नई दिल्ली। भारतीय फार्मा उद्योग को गुणवत्ता की शिद्दत से दरकार है। गौरतलब है कि भारत विश्वभर में दवा सप्लाई मेंं 80 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। इसके बावजूद फार्मा उद्योग को दवा की गुणवत्ता में बढ़ोतरी लाने और इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) की जरूरत है।
इससे फार्मा सेक्टर में इनोवेशन और क्रिटिकल दवा का निर्माण घरेलू स्तर पर शुरू हो सकेगा। साथ ही दवा के कच्चे माल का भी यहां बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव होगा। सरकार से बजट में फार्मा आरएंडडी के लिए विशेष फंड देने की मांग की गई है। उद्यमियों का मानना है कि फार्मा इंडस्ट्री की गुणवत्ता को भी बढ़ाए जाने की जरूरत है और बजट में इस दिशा में भी कदम उठाया जाना चाहिए। वहीं, नए केमिकल बनाने वाली कंपनियों को इंसेंटिव देने की भी गुजारिश की गई है।
बता दें कि बीते साल इंडोनेशिया, नाइजीरिया, तजाकिस्तान, श्रीलंका जैसे कई देशों में भारतीय दवा की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे हैं। बजट में दवा निर्माता कंपनियों के अनुपालन भार को कम करने की भी मांग उठाई गई है।
बीते तीन सालों से देश के फार्मा व ड्रग निर्यात में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
2023-24 में निर्यात 9.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 27.9 अरब डॉलर के स्तर पर दर्ज किया गया है। वर्ष 2030 तक इसे 130 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। पिरामल फार्मा लिमिटेड की चेयरमैन नंदिनी पिरामल का मानना है कि भारतीय दवा के निर्यात की बड़ी संभावनाएं हंै। बजट में सरकार को दवा निर्यात के प्रोत्साहन के लिए इंसेंटिव की घोषणा करनी चाहिए। इससे कंपनियां बड़े निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकेंगी।
गौरतलब है कि तीन साल पहले तक दवा के कच्चे माल के लिए भारत मुख्य रूप से चीन पर निर्भर था। कोरोना काल में इसकी गंभीरता को देखते हुए सरकार ने दवा के कच्चे माल के निर्माण के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम की घोषणा की। इसके तहत 40 से अधिक कंपनियां आईं और कई ने उत्पादन भी शुरू कर दिया है। फार्मा के घरेलू उत्पादन और निर्यात में बढ़ोतरी को देखते हुए फार्मा उद्यमी इस सेक्टर को अब रिसर्च व इनोवेशन के सहारे नए चरण में ले जाना चाहते हैं।
उधर, मेडिकल उपकरण निर्माताओं ने सरकार से बजट में उपकरणों के आयात पर लगने वाले शुल्क को 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने की मांग की है। एसोसिएशन आफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के अनुसार भारत तीन साल से 61,000 करोड़ से अधिक मूल्य के मेडिकल उपकरणों का आयात कर रहा है।
वित्त वर्ष 2023-24 में यह आयात 69,000 करोड़ तक पहुंच गया। आयात शुल्क बढऩे से वे उपकरण महंगे हो जाएंगे और घरेलू स्तर पर निर्मित उपकरणों की मांग बढ़ेगी। घरेलू स्तर पर मेडिकल उपकरणों का उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू होने पर उनकी कीमत और कम हो जाएगी। इससे मरीजों को कम दाम पर उपकरण मिल सकेंगे।