दवा कंपनियों ने बेहतरी के लिए बदली राह

नई दिल्ली। दवा कंपनियों की हालत कुछ साल से काफी खराब है। इससे निकलने के लिए आज वे उसी रास्ते पर चल रही हैं, जिसका फासला कुछ समय पहले वे तय कर चुकी हैं। वे नॉन-कोर बिजनेस बेच रही हैं। खर्च में कटौती कर रही हैं। रिसर्च और डेवलपमेंट (आरएंडडी) पर खर्च बढ़ा रही हैं। और यहां तक कि टॉप मैनेजमेंट लेवल पर बदलाव करने से भी नहीं हिचक रही हैं।
सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज ने वित्त वर्ष 2020 में आरएंडडी पर 7-7.5 पर्सेंट खर्च करने का अनुमान दिया है, जिसके वित्त वर्ष 2019 में 9-8 पर्सेंट रहने का अनुमान है। कर्ज से छुटकारे के लिए स्ट्राइड्स फार्मा साइंस अपने ऑस्ट्रेलियन बिजनेस को बेच रही है और अमेरिका व कनाडा में जेनेरिक बिजनेस खरीद रही है। विविमेड लैब्स के साथ ज्वाइंट वेंचर में वह अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 100 पर्सेंट करने जा रही है।
ल्यूपिन ने माना कि 2016 में गैविस को खरीदने से उसकी उम्मीद पूरी नहीं हुई। यह किसी भी भारतीय दवा कंपनी का विदेश में अब तक का सबसे बड़ा एक्विजिशन था। ल्यूपिन ने पिछले दो साल में किसी अन्य कंपनी को नहीं खरीदा है। रैनबैक्सी को खरीदने के बाद सन फार्मा ने कई छोटे एक्विजिशन किए ताकि स्पेशियलिटी प्रॉडक्ट्स पोर्टफोलियो को बढ़ाया जा सके। कामकाजी क्षमता को बेहतर करने और लागत घटाने के लिए डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज ने पिछले साल अपने एंटिबायोटिक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट और एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआई) प्लांट को बेचने की बात कही थी। सिर्फ अरबिंदो फार्मा और कैडिला हेल्थकेयर ने ही हाल के महीनों में बड़े एक्विजिशन किए हैं। अरबिंदो ने नोवार्टिस की कुछ जेनेरिक बिजनेस यूनिट्स खरीदी हैं तो कैडिला ने भारत में हाइंज के ब्रांड्स को अपनी सब्सिडियरी जायडस वेलनेस के जरिये खरीदा है।
अमेरिका और भारत में प्राइसिंग प्रेशर के कारण दवा कंपनियों के एजेंडे में लागत घटाना सबसे ऊपर है। कंपनियों ने सेल्स स्टाफ को छोटा किया है और कामकाजी क्षमता बढ़ाने के लिए प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो में बदलाव। कुछ कंपनियों ने मैनेजर लेवल पर बदलाव भी किए हैं। ल्यूपिन के वाइस चेयरमैन कमल शर्मा पिछले साल सितंबर में नॉन-एग्जिक्यूटिव रोल में भेज दिए गए और कंपनी के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर रमेश स्वामिनाथन ने दिसंबर में इस्तीफा दे दिया। डॉ रेड्डीज ने नॉर्थ अमेरिकी बिजनेस के लिए हाल ही में नया सीईओ नियुक्त किया है। पिछले साल अप्रैल में कंपनी ने नया सीओओ अप्वाइंट किया था। सन फार्मा ने भी पिछले साल अपने सीएफओ और नॉर्थ अमेरिकी बिजनेस के सीईओ को बदला था। इनका असर आने वाली तिमाहियों में दिखेगा, लेकिन दवा कंपनियों का ध्यान प्रॉफिटेबिलिटी सुधारने, प्रॉडक्ट मिक्स को बेहतर करने और कर्ज से छुटकारा पाने पर बना हुआ है।
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