एड्स दवा: सरकार कानून बना रही है, अस्पताल मुंह चिढ़ा रहे हैं

नई दिल्ली। तीन-चार दिन पहले ही राष्ट्रपति ने एड्स रोगियों से जुड़े कानून पर मुहर लगाते हुए उन्हें मुख्यधारा में बनाए रखने की मजबूत पहल की है। नए कानून में एड्स रोगियों के साथ आम आदमी जैसा व्यहार करने की बात कही गई। उन्हें इस अधिकार से दूर करने वाली बड़ी कंपनियां हो या आम आदमी, सबके लिए जुर्माना और सजा भुगतने का प्रावधान किया गया है। लेकिन राजधानी दिल्ली के कई बड़े अस्पताल एड्स रोगियों को लेकर कतई गंभीर नहीं है। अस्पतालों में एड्स पीडि़तों को दी जाने वाली दवाओं की भारी किल्लत बनी हुई है। एचआईवी पीडि़त एड्स रोगियों को नि:शुल्क बांटी जाने वाली इस दवा का सरकारी स्टॉक खाली होने को है। इसके चलते रोगियों को एक माह के बजाए केवल 15 दिन के लिए ही दवाएं मिल पाती हैं। रोगी बेहद परेशान हैं। समय पर दवा न मिल पाने से उनका इलाज प्रभावित हो रहा है।
इस संबंध में एक एनजीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में रिट दाखिल की है। रिट में कोर्ट को बताया गया कि  दिल्ली के एम्स, सफदरजंग, लोकनायक जयप्रकाश जैसे बड़े अस्पतालों में एड्स रोगियों को पर्याप्त मात्रा में दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। अस्पताल जिस दवा की कमी बता रहे हैं, वह बाहर दुकानों पर 1500-2000 रुपए में मिल रही है। गरीब लोगों के लिए इतनी महंगी दवा खरीद पाना उनके बूते से बाहर है।  इस समस्या के जल्द समाधान के लिए सरकार को निर्देश दिए जाएं। याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और अनु मल्होत्रा की खंडपीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है।

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