ब्रांड-साल्ट तक बदल कर बेच रहे दवा दुकानदार

जयपुर। राज्य में सरकारी दवा दुकानों पर फार्मासिस्ट ब्रांड और साल्ट तक बदल कर मरीजों को बेच रहे हैं। कमीशन के चक्कर में वे डॉक्टर की पर्ची को तो दरकिनार कर मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। डॉक्टर मरीज को पर्ची पर 2 रुपए वाली दवा लिखते हैं लेकिन फार्मासिस्ट उसके स्थान पर 18 रुपए वाली दवा थमा रहे हैं। कानूनन डॉक्टर की लिखी दवा का ब्रांड नहीं बदला जा सकता लेकिन इन दुकानों पर ब्रांड-सब्स्टिट्यूट तो दूर, साल्ट तक बदला जा रहा है। ऐसे में पेंशनरों-मरीजों की सेहत तो खतरे में है ही, सरकारी खजाने को रोजाना मोटी चपत लग रही है। सरकारी अफसर इससे वाकिफ हैं लेकिन आंखें बन्द कर वर्षों से पुनर्भरण कर रहे हैं। सरकारी दुकानों पर फर्मासिस्ट अनुबंध पर तैनात हैं। बिक्री बढ़ाने के लिए दवा कम्पनियां कमीशन देती हैं। इस खेल में ज्यादातर प्रोपेगेंडा (पीजी) पर जोर दिया जाता है। अक्सर महंगी दवाएं पीजी रैकेट का हिस्सा होती हैं। ये कम्पनियां दवा की कीमत लागत से कहीं अधिक रखती हैं। सरकारी दवा दुकानों पर ज्यादातर पेंशनर ही दवाएं लेते हैं और गड़बड़ी अक्सर पेंशनर्स के मामलों में की जाती है। जानकारी के अभाव में पेंशनर विरोध नहीं कर पाते। पेंशनरों की दवा का पुनर्भुगतान सरकार करती है। ऐसे में अधिक कीमत पर भी पेंंशनर ज्यादा ध्यान नहीं देते। कई मामलों में फार्मासिस्ट दवा अनुपलब्ध बता देता है और एनओसी से बचने के लिए पेंशनर महंगी दवा लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। एनओसी लेकर बाजार से खरीदी गई दवा का भी सरकार पेंशनरों को पुनर्भरण करती है लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगता है। नियमानुसार फार्मासिस्ट डॉक्टर की पर्ची में लिखी दवा बदल नहीं सकता। इस पर नजर रखने के लिए ट्रेजरी जाने वाले बिल में डॉक्टर की पर्ची की प्रति भी जाती है। ट्रेजरी में बड़ी संख्या में बिल जाते हैं लेकिन कोई जांचता नहीं है। इसी का फायदा उठाया जा रहा है। वर्षों से चल रहे इस खेल से कॉनफैड के साथ औषधि नियंत्रक अधिकारी भी वाकिफ हैं। इन विभागों में लिखित शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं की जा रही। राज्य उपभोक्ता संघ की 60 दवा दुकानें संचालित हैं। सर्वाधिक दुकानें सवाई मानसिंह अस्पताल में हैं। लगभग सभी सैटेलाइट अस्पतालों में भी ये दुकानें हैं और अब निजी अस्पतालों में खोलने का प्रयास किया जा रहा है। दुकान पर फार्मासिस्ट विभाग में पंजीकृत एनजीओ की ओर से अनुबंध के जरिए तैनात किए जाते हैं।
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