ई-फार्मा कम्पनियों की दलील, हमें लाइसेंस की जरूरत नहीं

नई दिल्ली। दवाइयों की ऑनलाइन बिक्री पर लगी रोक के आदेश के संबंध में दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान ऑनलाइन फार्मा कंपनियों ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि उन्हें दवाइयों की बिक्री के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं है। इन कंपनियों ने दलील दी कि ओला और उबर जैसे प्लेटफॉर्म को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है। वैसे ही ऑनलाइन दवा कंपनियों को भी लाइसेंस की जरूरत नहीं है। वे न तो दवा बनाते हैं और न ही बेचते हैं बल्कि वे केवल दवाइयों की डिलीवरी के लिए प्लेटफॉर्म के रूप में काम करते हैं।
वन एमजी टेक्नोलॉजी की ओर से वरिष्ठ वकील अमित चड्ढा ने चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि ऑनलाइन कंपनियां दवाइयों को नहीं बनाती हैं और न ही स्टॉक करती हैं, बल्कि वे केवल एक प्लेटफॉर्म की तरह काम करती हैं। तब जस्टिस सी. हरिशंकर ने पूछा कि क्या आप अमेजन की तरह काम करते हैं, तब चड्ढा ने कहा कि हम ओला, उबेर की तरह काम करते हैं जिनके पास एक भी कैब नहीं होती और उन्हें मोटर व्हीकल एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है। इसके पहले की सुनवाई के दौरान भी ऑनलाइन कंपनियों ने कहा था कि वे दवाइयां नहीं बेचते हैं बल्कि वे दवाइयों की डिलीवरी करते हैं। जैसे खाने की चीजें बेचने वाली स्विगी ऐप करती है। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि वो ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर नियंत्रण करने के लिए नियम बना रही है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से वकील कीर्तिमान सिंह ने कहा था कि इस संबंध में नियम बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। उसके बाद कोर्ट ने अवमानना याचिका पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। पिछले 26 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन और दिल्ली सरकार के ड्रग कंट्रोलर को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने ऑनलाइन तरीके से दवाइयों की बिक्री कर रही कंपनियों को भी नोटिस जारी किया है।
याचिका दायर करने वाले डॉ. जहीर खान ने अपने वकील नकुल मोहता और मिशा रोहतगी मोहता के जरिए कहा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल के दिशा-निर्देशों के बावजूद लाखों दवाइयां ऑनलाइन बेची जा रही हैं। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और दिल्ली के ड्रग कंट्रोलर की लापरवाही की वजह से ई-फार्मेसी कंपनियां धड़ल्ले से दवाइयां बेच रही हैं। वे न केवल अपना प्रचार कर रहे हैं बल्कि वे अपने वेबसाइट और ऐप का विस्तार कर रही हैं। ये सबकुछ कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए की जा रही हैं। बता दें कि दिसंबर 2018 में कोर्ट ने आनलाइन दवाइयों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। याचिका में कहा गया था कि दवाइओं की ऑनलाइन बिक्री के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है जिसकी वजह से ये रोगियों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। याचिका में कहा गया था कि सामान्य चीजों की तरह दवाइयों के दुरुपयोग से आम जनता को काफी नुकसान हो सकता है। दवाइयों का इस्तेमाल बच्चों से लेकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के जुड़े लोग भी करते हैं जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। कुछ दवाइयां साइकोट्रॉपिक होती हैं, जिन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आसानी से ऑर्डर किया जा सकता है। इनका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए भी हो सकता है।

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