दवाओं की कीमतें चार गुना बढ़ी, मरीजों पर पड़ रहा असर

अलीगढ़। केंद्र की मोदी सरकार ने फिक्स डोज कांबिनेशन (एफडीसी) यानि कई साल्ट से निर्मित दवाओं पर रोक लगाई थी जिसका असर दिखने लगा है। प्रतिबंध के बाद कंपनियों ने हर साल्ट की अलग दवा बनाना शुरू किया, जिससे कीमतें चार गुना तक बढ़ गईं। इसका बुरा असर मरीजों पर पड़ रहा है।

गौरतलब है कि सरकार ने एफडीसी दवाओं पर रोक यह देखते हुए लगाई थी कि जिन मरीजों को कांबिनेशन साल्ट की जरूरत नहीं, उनको भी इसे लेना पड़ता था। इसका शरीर पर प्रतिकूल असर होता था। सरकार अपने इस उद्देश्य में तो सफल रही लेकिन इसके दूसरे परिणाम खराब निकले। जो प्रमुख दवाएं महंगी हुई हैं, उनमें बहुत अधिक मांग वाली जीफी जेड टेबलेट सात से आठ रुपये में मिलती थी। अब इसमें शामिल सेफीक्सीन के लिए 12 एजीथ्रोमाइसिन के लिए 20 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। यह एंटीबायोटिक दवा हैं, जो सर्दी-खांसी में बहुतायत में बिकती हैं। मेकपोड एजेड टेबलेट 16-17 रुपये की आती थी। अब एजीथ्रोमाइसिन व सेफ्पोडोक्सीम के लिए 38-40 रुपये खर्च हो रहे हैं। जीफी टरबो टेबलेट भी 17 रुपये की आती थी, इसमें शामिल सीफीक्सीम व लीनेजोलाइड पर 30 रुपये तक खर्च होते हैं। यह भी एंटीबायोटिक दवा हैं।

केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के पूर्व कोषाध्यक्ष सुनील राना कहते हैं कि एफडीसी की दवा पर रोक का तर्क ठीक है, मगर जरूरी दवाएं महंगी न हों, यह भी देखना चाहिए था। वहीं रिटेलर्स केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री उमेश श्रीवास्तव कहते हैं कि कांबिनेशन की सभी दवाओं पर रोक ठीक नहीं, इससे सामान्य सर्दी, खांसी-जुकाम या संक्रमण की दवा पर ही 250-300 रुपये खर्च हो रहे हैं। इससे गरीब मरीजों को ज्यादा परेशानी हुई है। सरकार को कंपनियों पर अंकुश लगाना चाहिए, इन दवाओं को भी मूल्य नियंत्रण सूची में शामिल करना चाहिए।

 

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