जीएसटी की सुबह मरीजों को आने लगा है दुःस्वप्न

दवा की भारी किल्लत एवं कालाबाजारी  का अंदेशा

नई दिल्लीः जीएसटी की सुबह बाजार में दवाइयों की भारी किल्लत की आशंका से बीमार दहशत में हैं। इस क्षेत्र के जानकार यह आशंका जता रहे हैं कि जीएसटी की वजह से मरीजों के बुरे दिन आने वाले हैं।
मध्य रात्रि में संसद के सेंट्ल हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में अच्छे दिन के जो सपने दिखाए, उसकी सुबह ही मरीजों को दुःस्वप्न आने लगे हैं। फार्मा क्षेत्र की जानी मानी हस्ती एवं बायोटेक कंपनी बायोकान की चेयरमैन किरण मजुमदार शा ने आगाह किया है कि हड़बड़ी में लागू किया हुआ यह जीएसटी मरीजों और दावा कंपनियों पर भारी पड़ने वाला है ।
उन्होंने बिना लाग लपेट के कहा है कि दवा की खासी किलल्त तो होगी ही, दवा की कालाबाजरी भी होगी। उनका मानना है कि जिन कुछ सेक्टरों को जीएसटी से झटका लगने की संभावना उसमें दवा क्षेत्र सबसे आगे है। उन्होंने कहा कि मरीजों के लिए आने वाले विकट समय का उन्हें आभास होना शुरु हो गया है।
उन्होंने कहा कि जीएसटी को लेकर दवा के स्टाकिस्टों के बीच इतना आतंक फैला हुआ है कि उन्होंने दवा को स्टाक करने से ही इनकार करना शुरु कर दिया है । इससे मरीज तो बेहाल होंगे ही, दवा कंपनियों को भी भारी घाटा सहना पड़ेगा, हालांकि वे जीएसटी के लिए तैयार हैं । लेकिन आपूर्ति की कड़ी के अन्य साझीदार जीएसटी के लिए कतई तैयार नहीं हैं। वे नर्वस दिख रहे हैं।
एक टीवी टैनल से शा ने कहा है कि इस महीने हमारे कारोबार पर पहले ही प्रतिकूल असर पड़ चुका है। दवा का घरेलू बाजार बुरी तरह से प्रभावित हो चुका है।
किरण शॉ मौजूदा जीएसटी की धुर विरोधी रही हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने कर प्रणाली को सरल बनाने की जगह क्लिष्ट बना दिया है।
उनके कहने से तो ऐसा लग रहा है कि अगले कुछ दिनों में मरीजों के बीच अफरातफरी की स्थिति पैदा होने वाली है । एक डॉक्टर ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा कि जीएसटी के अन्य प्रभावों का आकलन तो आने वाले दिनों में ही किया जा सकेगा लेकिन मरीज शर्तिया पिसने वाले हैं। उन्होंने कहा कि अगर जीवन रक्षक दवाइयों की किल्लत हुई तो सरकार की बड़ी भद पिटने वाली है । सरकार को कुछ अति संवेदनशील क्षेत्रों पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए था। दवा क्षेत्र एक संवेदनशील क्षेत्र है ।


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