औषधि विभाग ने रेड कर नकली दवा-इंजेक्शन किए जब्त

झांसी। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने छापेमारी कर दवाइयां व इंजेक्शन नकली या फिर गुणवत्ता रहित बरामद किए हैं। इनमें एंटीबायोटिक, मधुमेह, बुखार, गैस आदि की दवाएं व इंजेक्शन शामिल हैं। यही नहीं, जानवरों को बुखार में लगाया जाने वाले इंजेक्शन तक नकली मिला है। विभाग ने संबंधित कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। एंटीबायोटिक सैफ्पोड 200 एमजी दवा नकली मिला है।
खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के औषधि निरीक्षक (डीआई) उमेश भारती ने बताया कि उन्होंने बीती 12 जुलाई को झरनागेट स्थित मेडिकल स्टोर में छापेमारी कर नमूना एकत्र किया था। जांच के लिए भेजे गए नमूने की रिपोर्ट आ गई है। इसमें सेफोडॉक्सिम सॉल्ट लिखा होने के बावजूद नहीं मिला है। ऐसे में यह नकली दवा है। विवेचना का पत्र कंपनी व मेडिकल स्टोर संचालक को भेजा जा रहा है। यदि मेडिकल स्टोर बिल प्रस्तुत नहीं कर पाया, तो उसको भी आरोपी बनाया जाएगा। बताया गया कि 18/27 ड्रग एक्ट कॉस्मेटिक एक्ट के तहत नकली दवा बेचने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया जाएगा।
गौरतलब है कि बुखार में अक्सर डॉक्टर मरीज को सेरिसेफ एंटीबायोटिक लिखते हैं। इसमें एजिथ्रोमाइसिन और सफेक्सिम पाया जाता है। औषधि निरीक्षक ने बताया कि जुलाई 2018 में उन्होंने न्यू रोड स्थित मेडिकल स्टोर से सैंपल लिया था। पिछले महीने ही इसकी जांच रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट में सफेक्सिम कम मिला है। कम गुणवत्ता की मिलने पर कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है। इसके अलावा विटामिन डी व ए के लिए दी जाने वाली सिपडीविट कैप्सूल में विटामिन ए की मात्रा कम पाई गई है। मऊरानीपुर के एक मेडिकल स्टोर से एफडीए की टीम ने इसका सैंपल लिया था। अगस्त में कंपनी के खिलाफ मुकदमा कराया गया है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के सीएचएसडी स्टोर का इंजेक्शन का नमूना भी खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की जांच में फेल हो गया है। डीआई ने बताया कि जुलाई में रेनटेक इंजेक्शन का नमूना लिया था। इसमें रेनिटिडिंग की मात्रा कम पाई गई है। यह इंजेक्शन गैस के लिए लगाया जाता है। इस पर रोक लगा दी गई है। कंपनी ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है। औषधि निरीक्षक ने बताया कि जांच में जैसे ही कोई दवा, कैप्सूल अथवा इंजेक्शन अधोमानक या नकली मिलता है तो उसका उत्पादन बंद करने के लिए पत्र संबंधित ड्रग कंट्रोलर को पत्र लिखा जाता है। इसके अलावा केंद्र सरकार के ड्रग कंट्रोलर को भी इसकी कॉपी भेजी जाती है। इसके बाद ब्रांड का नाम बैन हो जाता है।

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