1 हजार रुपए वाली दवा के वसूल रहे 12 हजार

इंदौर। दवा कंपनियां, डॉक्टर और निजी अस्पताल संचालक मिलकर सरकार के दवा कीमतों पर लगाम लगाने के तमाम प्रयासों पर पानी फेर रहे हैं। गर्भाशय कैंसर की दवा पैक्लीटैक्सेल सरकार को एक हजार रुपए में सप्लाई में मिलती है, वही दवा निजी अस्पताल अपने मेडिकल स्टोर से 10-12 हजार रुपए की एमआरपी पर बेचते हैं। इसके अलावा, ब्लड कैंसर की दवा रितुझेमब पर एमआरपी 30 से 40 हजार तक प्रिंट है। बाजार में यह 15-20 हजार में मिल जाती है, जबकि कंपनियां इसे सरकार को केवल 8 हजार में देती हैं। वहीं, बीवोसीजेमेब दवा पर 38 हजार तक की एमआरपी है। बाजार में यही दवा 25 हजार में उपलब्ध है। यह दवा सरकार या बड़े कॉरपोरेट अस्पताल को 10 हजार में दी जाती है। स्तन कैंसर की दवा ट्रांसट्यूजोमेब की कीमत लांचिंग के वक्त दो लाख एमआरपी थी। अब इसे कई कंपनियां बनाती हैं । इस कारण यह दवा 16 हजार रुपए में मिल जाती है। निजी अस्पताल इसके 50 से 60 हजार तक वसूल कर रहे हैं।
होमी भाभा कैंसर रिसर्च सेंटर की डॉ. लीला दिगुमती का कहना है कि नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने दिल्ली, गुडग़ांव के बड़े अस्पतालों में गत वर्ष एक सर्वे किया था। एनपीपीए के मुताबिक निजी अस्पताल कैंसर दवाओं के लिए बाजार भाव से 17 गुना तक कीमत वसूल रहे हैं। कमोबेश यही हालत इंदौर सहित प्रदेश में भी है। बल्क में खरीदी करने के लिए यह अस्पताल दवा कंपनियों पर महंगी एमआरपी लिखने का दबाव डालते हैं।

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