कोरोना मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी फेल : एम्स

नई दिल्ली। एम्स ने दावा किया है कि प्लाज्मा थेरेपी से डेथ रेट में अंतर नहीं आया। एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि हाइपोक्सिया से पीडि़त कोरोना मरीज के लिए ऑक्सिजन किसी दवा से कम नहीं है। समय पर ऑक्सिजन मरीजों की जान बचाने में मददगार है। दरअसल, कोरोना के इलाज में पूरी दुनिया में प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है। देश में भी कई सेंटरों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। दिल्ली में भी कई अस्पतालों में कोरोना के मरीजों में यह थेरेपी दी जा रही है। हालांकि, अभी यह ट्रायल स्तर पर ही है। इस बीच एम्स का कहना हे कि कोरोना के इलाज में प्लाज्मा कोई चमत्कारिक थेरेपी नहीं है। यह कोरोना से पीडि़त मरीजों के डेथ रेट को कम कर पाने में सक्षम नहीं पाया गया है। हालांकि, इसके बाद भी एम्स ने इस थेरेपी को पूरी तरह से खारिज नहीं किया है, एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना से पीडि़त मॉडरेट मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी दी जा सकती है, गंभीर मरीजों में इसका कोई फायदा नहीं है। लेकिन कोविड के कई मरीजों में आक्सिजन के स्तर में कमी देखी जा रही है। इसे मेडिकली हाइपोक्सिया कहा जाता है। एम्स के डॉक्टर का कहना है कि ऐसे मरीजों में अधिक गंभीर लक्षण नहीं होने के बावजूद अचानक शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा बहुत कम हो जाती है। ऐसे मरीजों की जान बचाने में ऑक्सिजन थेरेपी बहुत मददगार है। इसलिए डॉक्टर को कोरोना के इलाज में ऑक्सिजन को दवा का नाम दे रहे हैं। क्योंकि कई मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी के बाद भी लंबे समय तक ऑक्सिजन सपोर्ट देना पड़ता है। एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया के अनुसार, एम्स ट्रॉमा सेंटर में 30 मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल किया गया। इस ट्रायल में एक ग्रुप के मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई और दूसरे ग्रुप को सामान्य इलाज किया गया। इस ट्रायल में यह देखा गया कि दोनों वर्ग के मरीजों की डेथ रेट में कोई अंतर नहीं पाया गया। इस ट्रायल के बाद ही यह कहा गया है कि प्लाज्मा थेरेपी कोई चमत्कारिक थेरेपी जैसा नहीं है। इस बारे में एम्स के मेडिसिन विभाग के डॉ. मनीष सुनेजा के अनुसार, आइसीएमआर ने देश भर के कई सेंटरों में इस थेरेपी का ट्रायल कराया है। अभी इसका रिजल्ट नहीं आया है।

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