बाल अधिकार आयोग ने लिया कड़ा संज्ञान,पिछले पांच साल के रिकार्ड की जांच के दिए आदेश

बठिंडा। सिविल अस्पताल बठिडा में ब्लड बैंक से एचआइवी संक्रमित खून थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को चढ़ाए जाने का पंजाब राज्य बाल अधिकार आयोग ने कड़ा संज्ञान लिया है। सेहत एवं परिवार कल्याण विभाग को लिखे पत्र में आयोग ने सिविल सर्जन, एसएमओ और जांच कमेटियों की कारगुजारी पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। गौरतलब है कि आयोग ने अब पिछले पांच साल के रिकार्ड की जांच करने के लिए कहा है।

एचआइबी ब्लड टेस्ट के लिए किट गायब करने और फिर बाहर से मंगवाकर रिकार्ड पूरा करने का खेल कब से चल रहा है। इसकी जांच के आदेश भी दिए हैं। अब ब्लड बैंक के रिकार्ड की रोजाना जांच होगी। टेस्टिंग किटों के नंबर का मिलान कर रिकार्ड तैयार किया जाएगा जिसकी जिम्मेदारी बीटीओ की होगी। साथ ही आयोग ने एसएमओ को हिदायत दी है कि वह एक हफ्ते में पूरे मामले को रिव्यू करके ब्लड बैंक के रिकार्ड की जांच करें और आला अधिकारियों को इससे अवगत करवाएं। थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों और महिला को एआरटी के लिए सुविधा से लेस सेंटर में भेजें। दरअसल थैलेसीमिया पीडि़तों को रक्त देने वाले लोगों की जांच करें।

अगर कोई एचआइवी संक्रमित पाया जाता है तो उसकी ओर से दिया रक्त किसे चढ़ाया गया है उसकी जांच की जाए। अगर किसी को एचआइवी संक्रमित ब्लड चढ़ा है तो उस अधिकारी व कर्मचारी के खिलाफ पुलिस में आपराधिक मामला दर्ज करवाएं। सभी मामलों की जांच 20 दिन में पूरी करने के लिए भी कहा है। तो वहीं आयोग के चेयरमैन रजिदर सिंह ने पत्र में कहा है कि एक महिला और चार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआइवी संक्रमित खून चढ़ाने के मामले सामने आ चुके हैं। इतने गंभीर मामले में सिविल सर्जन और एसएमओ ने ब्लड बैंक के बीटीओ (ब्लड ट्रांजेक्शन आफिसर) और एमएलटी (मेडिकल लैब तकनीशियन) की जिम्मेदारी तक तय नहीं की।

पहले मामले में तत्कालीन बीटीओ व एमएलटी बलदेव सिंह रोमाणा सहित रक्तदान करने वाले की काल डिटेल नहीं जांची गई। उसे सबूत के तौर पर रिकार्ड में रखना चाहिए था। यह लापरवाही है या फिर आरोपितों को बचाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया गया है। एचआइवी पाजिटिव ब्लड टेस्टिग की करीब 600 किट रिकार्ड पूरा करने के लिए बाहर से मंगवाई गई, लेकिन जांच कमेटी ने यह जानकारी नहीं जुटाई कि अस्पताल को जारी किट कहां गई।

बाहर से किट किस व्यक्ति से ली गई और उसका ब्लड बैंक से क्या हित साधा जा रहा था। इतने गंभीर मामले की जांच अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों ने खुद क्यों नहीं की। इससे शक पैदा होता है कि इस पूरे मामले में कुछ गलत हो रहा है। नियमानुसार अधिकारी जांच के बाद पुलिस को जानकारी देते लेकिन ऐसा भी नहीं किया गया। पांच साल के रिकार्ड की होगी जांच।

 

 

 

 

 

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