कईफार्मा कपंनियों पर ताला लटकने के आसार

नई दिल्ली: अब फार्मा कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर दवा नहीं बनवा पाएंगी। जिस कंपनी की दवा है, उसे खुद ही दवा मैन्युफैक्चरिंग भी करनी होगी। ऐसे में दवाओं के दाम आने वाले दिनों में बढऩा स्वाभाविक है। दरअसल, दवाओं की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सरकार ने नई फार्मा पॉलिसी के तहत ये प्रस्ताव दिया है। यह प्रभावी हुआ तो कई फार्मा एसएमई कंपनियों में ताला लगने की नौबत भी आ सकती है।

देश में अभी तक अकसर देखने में आता है कि दवा बनाने वाला कोई, बेचने वाला कोई और ब्रांड किसी का, निर्माण किसी का। लेकिन अब दवाएं न तो ऐसे बनेंगी और न ही बिकेंगी। केंद्र सरकार दवाओं के लिए लोन लाइसेंसिंग और कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग खत्म करने जा रही है। सरकार की तरफ से जारी ड्राफ्ट फार्मा पॉलिसी में इसका बखूबी जिक्र है। फिलहाल फार्मा कंपनियां अपने कुल दवा उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा लोन लाइसेंसिंग और कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के जरिए ही बनवाती है। बड़ी कंपनियां इसके तहत दवा निर्माण खुद न करके किसी छोटी फैक्टरी को जिम्मा सौंप देती हैं। जिनके पास दवा बनाने का हुनर तो है लेकिन बेचने का नहीं।

इंडस्ट्री के मुताबिक, सरकार के इस कदम से न सिर्फ दवाओं के दाम बढ़ेंगे बल्कि करीब 7 हजार छोटी, बड़ी कंपनियां प्रभावित होंगी। सरकार मानती है कि इस कवायद का मकसद दवा निर्माण में गुणवत्ता बनाए रखना और मुनाफाखोरी रोक कर ऊंचे मानकों पर आधारित दवा तैयार कराना है। हालांकि यह प्रस्ताव अभी ड्राफ्ट स्टेज पर है इसे कैबिनेट से संसद तक का सफर तय करना है। इंडस्ट्री इस बाबत अपनी दलीलें जल्द ही सरकार के सामने रखेगी।

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