दवा टेस्टिंग लैब का अनोखा कारनामा: 9 साल में 6000 में से जाँच हुई 600 की

जयपुर। प्रदेश में 8 करोड़ की जनता पर जयपुर की सेठी कॉलोनी स्थित एकमात्र सरकारी ड्रग टेस्टिंग लैब में दवाओं की जांच का पेंडेंसी का 9 साल में ग्राफ बढ़कर 6000 तक पहुंच गया है। 2012-13 में दवाओं की जांच 600 पेंडेंसी थी, जो अब बढ़कर 6 हजार हो गया है। दवाओं की जांच का जिम्मा चिकित्सा विभाग का है। बता दें कि 2012-13 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ही जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर में तीन ड्रग टेस्टिंग लैब खोलने की घोषणा की थी। लेकिन अभी तक धरातल पर नहीं आ सकी। नकली दवाओं को रोकने व नमूनों की पेंडेंसी कम करने के लिए जोधपुर, उदयपुर व बीकानेर में नई ड्रग टेस्टिंग लैब नहीं खुलने से जिम्मेदार अधिकारियों की मंशा पर सवाल उठने लगे है। लेकिन अभी तक लैब नहीं खुलने से वहां के दवाओं के सैंपल भी जयपुर लाने पड़ रहे है।

बीकानेर में वर्ष -2014 व जोधपुर व उदयपुर में वर्ष -2018 में भवन बनकर तैयार होने पर विभाग को स्थानान्तरण कर दिया है। यहां तक की तीनों लैबों के भवन व उपकरण पर 20 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके है। पहला कारण एकमात्र सरकारी ड्रग टेस्टिंग लैब को समय पर केमिकल और मशीनों के मेन्टिनेंस के लिए बजट उपलब्ध नहीं होना। दूसरा, असिस्टेंट ड्रग एनालिस्ट के 11 पदों पर 9 साल से भर्ती लंबित और जूनियर साइंटिफिक असिस्टेंट के 22 पदों पर भी भर्ती का इंतजार है। असिस्टेंट ड्रग एनालिस्ट के पदों की भर्ती करने के लिए आरयूएचएस ने भी मना कर दिया है।

पेंडेंसी का आलम यह है कि औषधि नियंत्रण विभाग ने जिस दवा का सैंपल लिया है, जब तक उसकी जांच रिपोर्ट आएगी, तब तक वह दवा हजारों मरीजों में बंट चुकी होती है। नमूनों के बढ़ते ग्राफ का कारण एक ही लैब पर जांच का भार और स्टाफ की कमी बताया जा रहा है। पिछले साल 2019-20 में एक ही लैब पर जांच का भार होने से पेंडेंसी 7483 तक थी। इधर, स्वास्थ्य विभाग के सचिव सिद्धार्थ महाजन ने औषधि विभाग के अधिकारियों की मीटिंग में दवाओं की जांच की धीमी रफ्तार पर फीडबैक लिया है। नई टेस्टिंग लैब का काम जल्द पूरा करने तथा नकली दवाओं पर ऑनलाइन मॉनिटरिंग के निर्देश दिए हैं।

 

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