दवा कंपनी मैकडब्ल्यू हेल्थकेयर बनाएगी अनूठी किट, एक पैकेट में मिलेंगी कोरोना की तीनों दवाएं

इंदौर। एक तरफ देश भर में कोरोना की मार झेल रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ दवा की कमी के साथ-साथ बाजारों से जरुरी दवा गायब होने के साथ महंगी भी होती जा रही है। बताना लाजमी है कि कोरोना काल में दवाओं की किल्लत से जूझ रहे और महंगी दवा खरीद रहे लोगों के लिए राहतभरी खबर है। कोरोना संक्रमित और लक्षण वाले मरीजों को दी जाने वाली तीन दवाएं उन्हें एक ही पैकेट में मिलेगी। अभी अलग-अलग दवा के लिए परेशान हो रहे लोगों को दवा का यह पैकेज मौजूदा कीमत से सस्ता भी मिल सकेगा। सोमवार को शासन ने इंदौर की दवा कंपनी मैकडब्ल्यू हेल्थकेयर को तीनों दवा की एक किट बनाने और बाजार में उतारने के लिए लाइसेंस जारी कर दिया है। चार दिन में जेंडी नाम से दवा की किट बाजार में उपलब्ध हो जाएगी। इस बीच फेबिफ्लू के निर्माण के लिए भी स्थानीय कंपनियां शासन की ओर से अनुमति का इंतजार कर रही हैं।

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच बाजार में कई दवाओं की कमी होने लगी है। बढ़ती मांग के चलते खेरची बाजार में दवाओं की कीमत भी ज्यादा वसूली जाने लगी है। इंदौर के सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र स्थित दवा कंपनी मैकडब्ल्यू ने शासन से कोरोना की तीन दवाओं का तय डोज एक ही किट में उत्‍पादन व बिक्री की अनुमति मांगी थी। यह कंपनी पहले से इन दवाओं को 15 देशों में निर्यात कर रही है। दरअसल कंपनी ने शासन को प्रस्ताव दिया था कि घरेलू मांंग के लिए स्थानीय स्तर पर दवा के तय डोज की एक ही किट बना दी जाए तो मरीजों की परेशानी और ज्यादा कीमत की दिक्कत खत्म हो सकती है। प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए एफडीए ने सोमवार को लाइसेंस जारी कर दिया। अगले चार दिन में कोरोना की यह दवा किट बाजार में उपलब्ध हो जाएगी।

ये होगा किट में

मैकडब्ल्यू कंपनी के संचालक अभिजीत मोतीवाले के अनुसार कोरोना पॉजिटिव और लक्षण वाले प्रत्येक मरीज को डॉक्टरों द्वारा तीन दवाओं का डोज निर्धारित है। हल्के से गंंभीर तक या एसिम्प्टोमैटिक मरीज को भी ये दवाएं लेेनी होती हैं। ये हैं आइवरमेक्टिन, डाक्सीसायक्लीन और जिंक-विटामिन की गोली।

आइवरमेक्टिन की तीन दिन में सिर्फ तीन गोली लेनी होती है। डाक्सीसायक्लीन पांच दिन तक 10 गोली दी जाती है जबकि जिंक दवा की खुराक 14 दिन लेनी होती है। अब तक मरीज ये दवाएं अलग-अलग खरीदते हैं। बाजार में मरीजों को कम खुराक पर भी पूरा पत्ता खरीदना पड़ता था। साथ ही काटकर लेने पर भी दवाओं की कीमत 250 से 300 रुपये चुकानी होती है। जारी हो रही किट में दवाओं की तय खुराक लगभग 150 रुपये में उपलब्ध हो जाएगी। इससे दवा ढूंढने की परेशानी के साथ लोगों का खर्च भी बच सकेगा।

इधर इंदौर की दो सेे तीन दवा कंपनियों ने फेबिफ्लू के निर्माण के लाइसेंस के लिए भी प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर को आवेदन किया है। हालांकि शासन से अब तक लाइसेंस जारी नहीं हुआ है। यदि फेबिफ्लू का लाइसेंस स्थानीय कंपनियों को दे दिया जाए तो इस दवा की किल्लत तो कम होगी ही ज्यादा दाम और ब्लैक मार्केटिंग पर भी अंकुश लगेगा। स्थानीय दवा कंपनियों के पास सूचना पहुंच रही है कि शासन के खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारी खुद कोरोना से पीड़ित हैं इसलिए लाइसेंस में देरी हो रही है।

इधर विभाग के अधिकारी फेबिफ्लू के निर्माण का लाइसेंस जारी नहीं किए जाने पर गोलमोल जवाब दे रहे हैं। प्रदेश के खाद्य व औषधि नियंत्रक पी. नरहरि से नईदुनिया ने इस बारे में पूछा तो उन्होंने भी स्थिति स्पष्ट करने से इन्कार कर दिया। बेसिक ड्रग डीलर्स एसोसिएशन के सचिव और भाजपा के प्रवक्ता जयप्रकाश मूलचंदानी ने इस बारे में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जल्द लाइसेंस जारी करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि शासन तीन महीने का अस्थाई लाइसेंस ही जारी कर दे तो लोगों को राहत मिलेगी।

 

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