अपने देश में कमी, विदेश में नर्सो को नौकरी दिलाएगी सरकारी एजेंसी

नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानदंड कहते हैं कि हर 6 मरीज पर 1 नर्स होनी चाहिए। लेकिन भारत में यह मानदंड अधिकांश राज्यों में पूरे नहीं होते। राजधानी में ही स्थिति बेहद खराब है। 30 मरीजों पर 1 नर्स का आंकड़ा है। यानी भारत के अस्पतालों में नर्सों की कमी है। साथ ही, नर्सों को अपने हितों की पूर्ति के लिए अकसर हड़तालों का सहारा लेना पड़ता। दूसरी ओर खबर आई है कि नर्सो को विदेश में नौकरी दिलाने का काम सरकारी एजेंसियां करेंगी। नर्स हितों के लिए काम करने वाली नर्सेज फेडरेशन की सदस्या प्रेम रोजी सूरी कहती हैं कि कायदे से 30 से 40 प्रतिशत नर्स रिजर्व होनी चाहिए, लेकिन यहां तो जरूरी अनुपात से भी सरकारी अस्पताल कोसों दूर हैं। बेहतर होगा, अपने देश में नर्सों के हितों को ध्यान में रख, जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाएं, क्योंकि नर्स देश के स्वास्थ्य ढांचे की रीढ़ होती हैं।
नर्सों को विदेशों में नौकरी दिलाने संबंधी दायित्व भारत सरकार के विदेश मंत्रलय ने उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम (यूपीएफसी) को सौंपा है। छह मई को यूपीएफसी को मंत्रलय की ओर से आदेश भी जारी किया जा चुका है। नई व्यवस्था से गौतमबुद्ध नगर के पांच संस्थानों से प्रतिवर्ष निकले वाली करीब 1500 नर्सों को सीधा लाभ मिलेगा। अधिकारियों के मुताबिक यूपीएफसी को उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि एनसीआर और उत्तर भारत के अन्य राज्यों की नर्सों को भी विदेश में नौकरी दिलाने की जिम्मेदारी दी गई है। अभी तक सिर्फ केरल व तमिलनाडु ही ऐसे दो राज्य थे, जहां पर तीन सरकारी एजेंसियां नर्सों को विदेश में नौकरी दिलाने का काम कर रही थीं। बाकी राज्यों में यह व्यवस्था पूरी तरह से निजी एजेंसीज के हाथ में थी। इसकी वजह से विदेशों में नर्सों का उत्पीडऩ और शोषण किया जा रहा था। इस मामले को वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया। नई व्यवस्था में विदेश में नौकरी चाहने वाली प्रत्येक नर्स के लिए अब इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ईसीआर) भी अनिवार्य कर दिया गया है।
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