कोरोना संक्रमित और इससे ठीक हो चुके मरीजों के लिए जरूरी खबर, अगर दिखें ये बदलाव तो ….

रोहतक। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर कई तरह से लोगों के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है। संक्रमण से ठीक हो रहे कई मरीजों में अब ब्लैक फंगस संक्रमण दिखाई दे रहा है। पिछले एक-डेढ़ माह में कोविड-19 संक्रमितों में यह समस्या तेजी से बढ़ी है। इस संक्रमण के कारण न सिर्फ लोगों की आंखों की रोशनी जा रही है, बल्कि इससे संक्रमितों की मौत भी हो रही है। ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमायकोसिस नई बीमारी नहीं है। यह वायरस कई सालों से वातावरण में मौजूद है। घरों में रोटी, ब्रेड या प्याज पर दिखने वाली फफूंद भी ब्लैक फंगस का ही एक प्रकार है। आम दिनों में यह संक्रमित नहीं करता, लेकिन इन दिनों जिन लोगों की शुगर बढ़ी हुई है और इम्युनिटी कमजोर है, वे इससे प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि ब्लैक फंगस कोरोना की तरह संक्रमण से फैलने वाली बीमारी नहीं है।

वायरस के म्यूटेशन के कारण न सिर्फ लोगों में इस बार गंभीर लक्षण देखे जा रहे हैं, साथ ही पहली लहर की तुलना में इस बार मौत के आंकड़े भी अधिक रहे हैं। इतना ही नहीं कोरोना के साथ ब्लैक फंगस संक्रमण के बढ़े मामलों ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों को कोविड के दौरान ज्यादामात्रा में स्टेरॉयड दवाइयां दी गई हैं, उन लोगों में फंगल संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है। ऐसे में लोगों के मन में सवाल आ रहे हैं कि क्या जिन्हें कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ है, उन्हें भी ब्लैक फंगस संक्रमण हो सकता है?

पीजीआईएमएस के वरिष्ठ प्रोफेसर एवं ईएनटी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आदित्य भार्गव ने म्यूकरमाइकोसिस/ब्लैक फंगस के बारे में बताया कि यह एक फंगल इन्फेक्शन है, जो आमतौर पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित लोगों की पर्यावरणीय रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को कम कर देता है। पहले चरण में यह नाक या मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। दूसरे चरण में यह आंख को प्रभावित करता है और तीसरे चरण में यह दिमाग पर हमला करता है। इलाज के लिए चार से छह सप्ताह तक दवाइयां लेनी पड़ती हैं और गंभीर मामलों में तीन महीने तक इलाज चलता है। उन्होंने बताया कि ब्लैक फंगस वातावरण में मौजूद है। खासकर मिट्टी में इसकी मौजूदगी ज्यादा होती है।

स्वस्थ और मजबूत इम्यूनिटी वाले लोगों पर यह अटैक नहीं कर पाता है, परंतु दूसरी गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों, डायबीटीज के मरीज, कैंसर के उपचाराधीन मरीज और ट्रांसप्लांट करवाने वाले व्यक्तियों को ब्लैक फंगस से संक्रमित होने का खतरा रहता है। स्टेरॉयड के अधिक इस्तेमाल से इम्यूनिटी कमजोर होने या अधिक समय तक आईसीयू में रहने वाले मरीज भी फंगल इंफेक्शन के लिए संवेदनशील होते हैं। डॉक्टर्स के अनुसार जिस संक्रमित मरीज को नियमित ऑक्सीजन लगाई गई हो उनमें से कई को म्यूकरमाइकोसिस की समस्या ज्यादा हो रही है। ऑक्सीजन र्सिंलडर या ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में इस्तेमाल किया जाने वाला पानी मेडिकेटेड डिस्टिल्ड वाटर होना चाहिए। पानी को नियमित बदला जाना चाहिए। इसके स्थान पर सामान्य पानी का उपयोग भी हानिकारक हो सकता है। ऑक्सीजन मशीन और र्सिंलडर के साथ जुड़े उपकरणों को भी नियमित साफ करना चाहिए। इसके अलावा डायबिटीज के रोगियों के साथ ही जिन्हेंं संक्रमण मुक्त होने के लिए अधिक स्टेरॉयड दिए गए हों, ठीक होने के बाद भी उनके स्वास्थ की नियमित जांच करनी चाहिए।

ब्लैक फंगस अर्थात म्यूकोरमाइकोसिस से ग्रस्त लोगों के आंख या नाक के पास लाल निशान देख सकते हैं या दर्द हो सकता है। इसके अलावा बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, खून की उल्टी और मानसिक संतुलन में बदलाव जैसे लक्षण हो सकते हैं। ब्लैक फंगस के संक्रमण के संकेत या चेतावनी मिल जाती है। यदि आपको नाक में दिक्कत महसूस हो रही हो, अगर आपको सिरदर्द हो, चेहरे के एक हिस्से में दर्द महसूस हो या उस हिस्से पर सूजन आ जाए, चेहरा सुन्न पड़ रहा हो, चेहरे का रंग बदल रहा हो, पलकों पर सूजन हो अथवा दांत हिलने लगे हो तो इसे ब्लैक फंगस का हमला समझें। यदि मुंह में छाले हो रहे हों और उन पर काली पपड़ी जम रही हो तो भी सावधान होने की आवश्यकता है। अगर ब्लैक फंगस ने आपके फेफड़े पर अटैक किया है तो आपको बुखार, सांस लेने में दिक्कत, खांसी, खांसी में खून आना, सीने में दर्द व धुंधला दिखाई पड़ना शुरू हो जाता है।

ऐसे में हाइपरग्लाइकेमिया को नियंत्रण में रखें। डायबिटीज से ग्रस्त लोग यदि कोविड संक्रमित होते हैं तो वह डिस्चार्ज होने के बाद ब्लड ग्लूकोज स्तर पर नजर रखें। स्टेरॉयड का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाए। ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान साफ और स्टेराइड वाटर का इस्तेमाल किया जाए। एंटीबॉयोटिक और एंटी फंगल दवाओं का इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से किया जाए। लोगों को सलाह दी गई है कि लक्षणों को नजरअंदाज न करें। नाक बंद होने के सभी मामलों को बैक्टीरियल संक्रमण के संकेत न समझें, विशेषकर कोरोना मरीजों में। जांच कराने से न हिचकें और इसके इलाज में देरी न करें।

कोविड-19 संक्रमित मरीजों को चिकित्सक इलाज के दौरान स्टेरॉयड देते हैं। चिकित्सकों के मुताबिक, जिन मरीजों को ज्यादा स्टेरॉयड्स या हायर एंटीबायोटिक इंजेक्शन दिए गए हैं उन्हें ही इस तरह का संक्रमण अधिक हो रहा है। बहुत से शहरों में जिला प्रशासन व चिकित्सकों द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए प्रोटोकॉल निर्धारित करने के निर्देश जारी किए गए हैं। ब्लैक फंगस के बारे में अफवाह फैलाई जा रही है कि कुछ कच्चा खाने से फंगल संक्रमण होना, इधर-उधर से लाए गए सिलेंडर से कोरोना मरीज को ऑक्सीजन की सपोर्ट देना व यह संक्रमण किसी विशेष स्थान पर ही हो रहा है आदि शामिल है। सच्चाई यह है कि होम आइसोलेशन में रह रहे कोरोना मरीजों में फंगल इंफेक्शन मिल रहा है।

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