उत्तर प्रदेश में रैपर पर ज्यादा कीमत छाप मोटा मुनाफा कमाने का खेल उजागर

लखनऊ: कैंसर के ट्रीटमेंट में काम आने वाली कई दवाएं और इंजेक्शन तो दोगुनी कीमत पर बिक रहे हैं। कई एंटीबायोटिक टैबलेट की कीमत में भी खेल कर कंपनियां हर महीने लाखों रुपये अतिरिक्त कमा रही हैं। राजधानी समेत प्रदेश के 13 जिलों में कई दवा एजेंसियों में फूड ऐंड सेफ्टी ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) की छापेमारी के बाद यह खुलासा हुआ है। पता चला है कि कई दवा कंपनियां प्रदेश में तय कीमत से अधिक मूल्य छापकर दवाएं बेच रही हैं।
नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने सभी दवाओं के सॉल्ट की अधिकतम कीमत तय कर रखी है। कंपनियां इससे अधिक कीमत पर दवाएं नहीं बेच सकतीं।
बता दें कि एक मई को एनपीपीए के चेयरमैन भूपेंद्र सिंह के साथ एफएसडीए के मुख्य कार्यालय में प्रमुख सचिव हेमंत राव और सभी जिलों के असिस्टेंट कमिश्नर और उत्तर प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर एके मल्होत्रा की बैठक हुई है।
बैठक के बाद 2 और 3 मई को एफएसडीए की टीमों ने राजधानी समेत प्रदेश के 13 जिलों में कई दवा एजेंसियों पर छापा मारा। इस दौरान 900 से अधिक दवाओं और इंजेक्शन के सैंपल लिए।गए। जांच के दौरान कई इंजेक्शन और दवाओं पर एनपीपीए की ओर से तय कीमत से अधिक मूल्य छपा मिला। ऐसे में एफएसडीए ने कार्रवाई के लिए इन सभी कंपनियों और दवाओं की लिस्ट सुबूत के साथ एनपीपीए प्रमुख कार्यालय भेजा है।
ड्रग प्राइस कंट्रोल अथॉरिटी-2013 के अनुसार, कोई भी कंपनी एनपीपीए की ओर से तय कीमत से अधिक दाम पर दवाएं नहीं बेच सकती। इसके लिए दवाओं के सॉल्ट और उनकी कीमत की पूरी लिस्ट एनपीपीए की वेबसाइट पर मौजूद है, जिसे हर साल अपडेट किए जाने की बात उन्होंने कही। नियमानुसार एनपीपीए अधिक कीमत पर दवा बेच रही कंपनी से उतनी ही रिकवरी कर सकता है।
दवा कंपनियां एक कीमो ड्रग बेचने पर 1000 से 1200 रुपये तक कमाई कर रही हैं। जो दवा बाजार में 1500 रुपये में मिलनी चाहिए वह 2500 से 3000 रुपये में मिल रही है। ऐसे ही प्रति दस टैबलेट की कीमत यदि 100 रुपये होनी चाहिए तो वह 150 से 200 रुपये में बिक रही है।
स्टेट ड्रग कंट्रोलर ने कहा कि दवाओं की सैंपलिंग की गई है। कई कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन किया है। सबका डेटा तैयार किया जा रहा है। इसमें कुछ की शिकायत एनपीपीए में की गई है। जिन बैच की दवाएं अधिक कीमत पर बिक रही थीं, उनकी बिक्री रुकवा दी गई है।
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