पहली बार भारत में सर्जरी में इस्तेमाल हुआ 3डी प्रिंटेड लैटिस, तंजानिया की थी महिला

नई दिल्ली। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टी ट्यूट ग्ररुग्राम में ऑर्थोपेडिक्सत टीम ने हाल ही में तंजानिया की 60 वर्षीय रोगी में सबसे बड़ा (भारत में) कस्टमम-मेड 3डी प्रिंटेट हिप इम्लांरम ट किया। इस तरह के कस्टीमाइज़्ीड इम्लांणर ट आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि पिछली तीन हिप सर्जरीज़ के कारण रोगी की पैल्विक बोन (कूल्हेट की हड्डी) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी।

तंजानिया की महिला हनीफा की पैल्विक बोन पिछली तीन हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के कारण गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई थी। इन तीन असफल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी ने नए और आसानी से उपलब्ध हिप इम्प्लांट के लिए बोन सपोर्ट की गुंजाइश काफी कम कर दी थी। कृत्रिम हिप पैल्विस में ढीला पड़ा था और प्रत्यारोपण के आसपास की मांसपेशियों में लगातार चुभन के कारण दर्द हो रहा था, जिससे रोगी आराम से सो भी नहीं पा रही थी। वह व्हीलचेयर पर थी। पैल्विक बोन को नुकसान होने के कारण उसका पैर 6 सेमी छोटा हो गया था।

विस्तृत परीक्षण और जांच के बाद तय किया गया कि तीसरी बार लगाए गए उसके कृत्रिम हिप (हिप प्रोस्थेदसिस) में सुधार के लिए कस्टम-मेड 3डी प्रिंटेड हिप इम्प्लांट की आवश्यकता है। उसके लिए बिना किसी सहारे के फिर से चलने और सामान्य जीवन जीने की यही एकमात्र उम्मीृद बची थी। डॉ. सुभाष जांगिड़, निदेशक और यूनिट हेड, बोन एंड जॉइंट इंस्टीट्यूट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा कि यह पहली बार है, जब भारत में हिप सर्जरी के लिए इतने बड़े 3डी प्रिंटेड कस्टमाइज़्ंड इम्प्लांट का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे मामले बहुत ही दुर्लभ और जटिल होते हैं।

हमें अंगों को रक्त की आपूर्ति करने वाले महत्वपूर्ण नसों और तंत्रिकाओं का सावधानीपूर्वक विच्छेदन करना पड़ा, क्योंकि वे पुराने कृत्रिम अंग के बहुत करीब थे और पिछली सर्जरी के चोटिल ऊतक से जुड़े हुए थे। इन महत्वपूर्ण संरचनाओं के किसी भी नुकसान के विनाशकारी परिणाम हो सकते थे, लकवा मार सकता था या प्रमुख इंट्रा पैल्विक नसों से गंभीर रक्तस्राव जीवन के लिए खतरा बन सकता था। हम रोगी के सभी महत्वपूर्ण वाहिकाओं, नसों और इंट्रा पैल्विक अंगों को बचाने में सफल रहे।

डॉ. जांगिड़ ने कहा कि सर्जरी में लगभग 7 घंटे लगे क्योंकि हमें पुराने चोटिल ऊतक से सुरक्षित रूप से निपटना था और सभी महत्वपूर्ण नसों, वाहिकाओं, मूत्राशय और अन्य महत्वपूर्ण पैल्विक अंगों को भी बचाना था। इतनी बड़ी सर्जरी के बावजूद रोगी को केवल चार यूनिट रक्त की आवश्यकता पड़ी। सर्जरी के बाद उसकी रिकवरी आसान रही। उसने अगले दिन से समान लंबाई के लिंब के साथ (उसके 6 सेमी छोटे पैर को इस सर्जरी में एक बराबर किया गया था) सपोर्ट लेकर चलना शुरू कर दिया। 3 सप्ताह के बाद टांके हटा दिए गए। सर्जरी के 6 सप्ताह बाद उसने छड़ी के सहारे चलना शुरू कर दिया।

Advertisement