बिना चीर फाड़ के डीसी-एमआरआई से चलेगा पता, कैंसर पर कौन सी दवा करेगी काम

कैंसर के मरीजों के लिए दवा को लेकर हमेशा संसय बना रहता है। कुछ दवाएं ऐसी भी होती है जो कैंसर मरीज को फायदा भी कर जाती है तो कई दवाएं नुकशान भी कर जाती है। अब इसी कड़ी में गुर्दा कैंसर से पीड़ित मरीजों पर तीन वर्ष तक गहन शोध के बाद केजीएममयू के डाक्टरों ने कैंसर जांच व इलाज में दवा का निर्धारण करने वाली नई तकनीकि की खोज कर दुनिया भर के मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण जगा दी है।

लखनऊ। कैंसर के मरीजों के लिए दवा को लेकर हमेशा संसय बना रहता है। कुछ दवाएं ऐसी भी होती है जो कैंसर मरीज को फायदा भी कर जाती है तो कई दवाएं नुकशान भी कर जाती है। अब इसी कड़ी में गुर्दा कैंसर से पीड़ित मरीजों पर तीन वर्ष तक गहन शोध के बाद केजीएममयू के डाक्टरों ने कैंसर जांच व इलाज में दवा का निर्धारण करने वाली नई तकनीकि की खोज कर दुनिया भर के मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण जगा दी है। केजीएमयू के डाक्टरों के अनुसार डायनेमिक कांट्रैस्ट एन्हैन्स्ट एमआरआई (डीसीई-एमआरआइ) से अब कैंसर मरीजों में बिना चीरफाड़ किए यह बताया जा सकेगा कि कौन से मरीज पर किस दवा का असर ज्यादा होगा। इससे मरीजों को सटीक इलाज मिल सकेगा। केजीएमयू के इस शोध को अंतरराष्ट्रीय जर्नल क्लीनिकल कैंसर में प्रकाशित भी किया गया है।

दरअसल डा. दुर्गेश द्विवेदी ने वर्ष 2016 से 2019 के बीच में यह शोध किया। उन्होंने बताया कि गुर्दा कैंसर के मरीजों के लिए अब तक 13 प्रकार की दवाएं हैं। मगर अभी तक यह बता पाना मुश्किल था कि किस मरीज पर कौन सी दवा काम करेगी। ऐसे में कुछ दवाएं मरीजों को फायदा करने के बजाए नुकसान करने लगती हैं। डॉ दुर्गेश द्विवेदी को उनके इस शोध के लिए अमेरिका में पुरस्कृत भी किया जा चुका है। केजीएमयू कुलपति डा बिपिन पुरी ने रेडियोडायग्नोसिस की विभागाध्यक्ष प्रो० नीरा कोहली व डा. दुर्गेश द्विवेदी समेत संकाय के अन्य सदस्यों को इसके लिए बधाई दी है। साथ ही रोगियों के हित में इसका इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है।

रेडियोडायग्नोसिस विधि से 49 मरीजों के 80 नमूने लेकर इसका आरएनए डेटा लेकर डीसीई-एमआरआइ से संबद्ध किया गया। इसके अलावा स्वतंत्र रूप से 19 गुर्दा कैंसर से ग्रस्त मरीजों के नमूनों का अध्ययन किया गया। यह मरीज एंजियोजेनिक व इम्यून थेरेपी ले रहे थे। इनमें कैंसर डीसीई-एमआरआई से विश्लेषण करने पर पता चला कि एक ही ट्यूमर में एंजियोजेनेसिस और इंफ्लामेट्री भिन्न तरीकों से बढ़ रहे थे। डीसीई-एमआरआइ कंट्रास्ट इन्हेंस्समेंट मेटास्टेटिकयों के बीच एंटी-इंजीथेजेनिक थेरेपी के लिए भी बेहतर तरीके से फिनोटाइप की पहचान करते हैं। इससे कैंसर कोशिकाएं खुद अपने लिए रक्त संचार का रास्ता विकसित कर लेती हैं। इस शोध से ऐसी कोशिकाओं की पहचान कर बेहतर से बेहतर दवा भी दी जा सकेगी। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही केजीएमयू में इस तकनीकि का इस्तेमाल शुरू किया जाएगा।

केजीएमयू में रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रोफेसर डा. दुर्गेश द्विवेदी ने बताया कि रेडियोजिनोमिक्स की यह विधा इमेजिंग, रेडीयोमिक्स व जिनोमिक्स (जीन में विविधता) का मिश्रण है। इससे रोग के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त होगी। अभी तक इसके लिए कैंसर प्रभावित अंग के टुकड़े लेकर जांच करनी पड़ती थी। मगर इस तकनीकि से जांच में टुकड़े की कोई जरूरत नहीं होगी। सिर्फ डीसीई-एमआरआइ विविधताओं और विषमताओं की पूरी जानकारी उपलब्ध करा देगी।

 

 

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