यहां डॉक्टर प्रधानमंत्री मोदी से भी नहीं डरते

वाराणसी: मोदी के इस अपने लोकसभा क्षेत्र में  भी सरकारी डॉक्टर शासन के सख्त निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए गरीब मरीजों को धड़ल्ले से बाहर की महंगी दवाएं लिख रहे हैं। यह हाल तब है जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है। शासन का साफ निर्देश है कि किसी भी मरीज को अस्पताल के बाहर की दवा न लिखी जाए। मगर यहां हर मरीज को लगभग 80 फीसदी दवाएं बाहर की लिखी जा रही हैं। एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार की पड़ताल में यह सच सामने आया है। मामले पर अस्पताल के सीएमएस डॉ. आरके कुशवाहा कहते हैं कि कोई मरीज ऐसी शिकायत करेगा, तभी कार्रवाई होगी।

जिला अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर को दिखाकर आने वाले मरीजों से जब पूछा गया तो सभी ने बाहर की दवा लिखे जाने की बात कही। चौंकाने वाली बात ये कि मरीजों को वे सब दवाएं भी बाहर से खरीदने के लिए लिखी जा रही हैं जो अस्पताल में सहज उपलब्ध हैं। प्रबंधन के मुताबिक, अस्पताल में 170 प्रकार की दवाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। गाजीपुर की सोनम और सोनी ने आई (आंख) ओपीडी में दिखाया। डॉक्टर ने एक मल्टी विटामिन, एक आयरन और एक आईड्रॉप लिखा। तीनों दवाएं अस्पताल में हैं लेकिन आई ड्रॉप बाहर से खरीदने को कहा गया। गाजीपुर की ही राजकुमारी पिछले एक साल से अस्पताल में गर्दन के दर्द का इलाज करा रही हैं लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि डॉक्टर की लिखी गई दवा अस्पताल के भीतर मिली हो। पर्चे पर लिखी दवाओं में पैरासिटामोल भी था जिसे अस्पताल से लेने के बजाय बाहर से खरीदने को कहा गया।

गढकरा सिंधौरा के अनिल उपाध्याय अपनी पत्नी राजकुमारी को दिखाने आए थे। अस्पताल के एक सर्जन ने उनकी जांच की। जांच के बाद बाहर की दवाएं लिख डाली। हैरानी की बात ये कि डॉक्टर ने दुकान का नाम भी बता दिया। अनिल ने लगभग पांच दुकानों पर दवा खरीदनी चाही लेकिन मिली वहीं जहां डॉक्टर ने भेजा था। अनिल का कहना है कि सरकारी अस्पताल समझकर इलाज कराने आए थे लेकिन 19 सौ रुपये की दवा खरीदनी पड़ी।

अस्पताल कर्मचारियों की मानें तो ये सब कमीशन का खेल है। दवा कंपनियां डॉक्टरों की सेवा में मोटा माल चढ़ाते हैं। कई डॉक्टर अस्पताल प्रशासन की चेतावनी के बावजूद निडर होकर बाहर की दवाएं लिख रहे हैं। इतना ही नहीं, ओपीडी के भीतर ही मेडिकल स्टोर के लोग बैठे नजर आते हैं। जो जांच के बाद रोगी को अपने साथ ही बाहर कैमिस्ट शॉप पर ले जाते हैं। मरीजों को बरगलाया जाता है कि बाहर बढिय़ा गुणवत्ता की दवा मिलेगी, जिससे इलाज में जल्दी असर होगा। कहीं डॉक्टर नाराज न हो जाए इसलिए मजबूरन मरीज के पास डॉक्टर की पसंदीदा मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने के अलावा और कोई चारा नहीं होता।

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