यूएस एफडीए के इस फैसले ने दी दवा जगत को खुशी

नई दिल्ली: कैंसर पीडि़तों के इलाज में उम्मीद की नई किरण दिखी है। एक भारतीय समेत वैज्ञानिकों के दल ने कैंसर से मुकाबले के लिए नई इम्युनोथेरेपी विकसित की है। रोगी के इम्युन सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) से जैविक रूप से तैयार किया गया है। यह उपचार कैंसर की कोशिकाओं को निशाना बना सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इस उपचार में हाल ही में स्वीकृत हुए सीडी-19 किमेरिक एंटीजीन रिसेप्टर (सीएआर) टी सेल थेरेपी को शामिल किया गया। थेरेपी को बी-सेल लिंफोमा (ब्लड कैंसर) पर आजमाया गया। कैंसर से मुकाबले के लिए रोगी के टी-सेल्स अर्थात टी लिंफोसाइट्स को प्रयोगशाला भेजा गया। यहां इसमें जैविक तौर पर बदलाव किया गया। इसमें एक जीन को शामिल किया जो टी सेल्स को कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए निर्देशित करता है। अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सत्तव नीलापू की मानें तो यह थेरेपी हाल ही में अमेरिकी खाद्य और दवा प्रशासन से स्वीकृत हुई है। हमारा मानना है कि यह कैंसर इलाज की दिशा में बड़ा कदम साबित होगी।

दूसरी तरफ, ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (टीबीआइ) के चलते आंत में रोग होने की बात सामने आई है। इससे मस्तिष्क चोट के और गंभीर होने का खतरा बढ़ सकता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर एलन फेदेन ने कहा कि इन नतीजों से मस्तिष्क और आंत के बीच परस्पर संबंध होने का बड़ा संकेत मिलता है। इससे मस्तिष्क चोट के बाद संक्रमण को समझने और इसका नया इलाज विकसित करने में मदद मिल सकती है। अध्ययन से पता चला कि टीबीआइ के बाद ब्लड प्वॉयजनिंग होने से पीडि़तों की मौत की आशंका 12 गुना ज्यादा बढ़ सकती है। साथ ही पाचन तंत्र की समस्या के चलते मौत का ढाई गुना खतरा अधिक हो जाता है। फिलहाल इसे लेकर भारत के चिकित्सा और दवा जगत में खुशी है।

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