रूबला-खसरा से बचाव के लिए लगेगा टीका

अंबाला। एसडीएम सतेन्द्र सिवाच ने कहा कि बच्चे को घातक बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूरी है। खसरा और रूबेला रोग से बचाव का टीका भी सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि एक बार बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चे का शरीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि खसरा रोग जहां बच्चों को प्रभावित करता है वहीं रूबेला रोग से माताओं के गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चे विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त होते हैं।

एसडीएम पंचायत भवन अम्बाला शहर में स्कूल के प्रिंसीपलों और मुख्य अध्यापकों की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से भी अनुरोध किया कि वे इस अभियान में सभी स्कूलों के प्रिंसीपल और मुख्य अध्यापकों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, निजी विद्यालयों के प्रिंसीपलों, रोटरी, लायंस क्लब सहित अन्य गैर सरकारी संगठनों को भी शामिल करें। उन्होंने कहा कि विकास एवं पंचायत विभाग के अधिकारियों के माध्यम से सरपंचों और स्थानीय निकाय विभाग के माध्यम से पार्षदों का सहयोग भी लें।

उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिए कि वे यह अभियान आरम्भ करने से पूर्व जिला के राजकीय और निजी विद्यालयों में प्रात:काली सत्र के दौरान बच्चों को इनके बारे में पूरी तरह जागरूक करें। टीका लगाने के समय यदि बच्चों के माता-पिता साथ रहना चाहें तो उन्हें भी आमंत्रित किया जाना चाहिए। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों, झुग्गी-झोपड़ियों, निर्माण स्थलों और स्टोन क्रैशरों पर बच्चों को यह टीका लगाने के लिए विशेष टीमों का गठन करें और इसके लिए गैर सरकारी संगठनों का सहयोग भी लें। उन्होंने स्कूल मुखियों को हरियाणा सरकार के सक्षम कार्यक्रम के तहत बच्चों की शैक्षणिक दक्षता बढ़ाने और बाल व विद्यालय वाहन सुरक्षा नियमों की पालना सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए।

सिविल सर्जन डॉ विनोद गुप्ता ने इस अवसर पर बताया कि यह टीका पूरी तरह सुरक्षित है। खसरा व रूबेला का टीकाकरण 9 मास से लेकर 15 वर्ष तक के बच्चों को किया जाता है। जिन बच्चों को सामान्य टीकाकरण के दौरान यह टीका लगा हुआ है, उनके लिए भी अप्रैल मास से आरम्भ किए जा रहे विशेष अभियान में यह टीका लगवाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि टीके का शरीर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नही है क्योंकि अब तक 15 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के 10 करोड़ बच्चों को यह टीका लगाया जा चुका है। इसके अलावा विश्व के 149 देशों में यह टीके लगाए जा चुके हैं।

 

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