मरने के बाद भी फीस लेने आ गया वकील

पंचकूला। आमजन से अक्सर सुना होगा कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं परंतु देखने को मिलता है कि अधिवक्ता कानून की पेचीदगियों की उलझन को बाखूबी तोड़ सकते हैं। जब मामला उनकी फीस का हो तो वे किसी भी नियम को अपने तरीके से मोड़ लेते हैं। फिर चाहे उन्हें स्वर्ग से धरा पर ही क्यों न आना पड़े। हाल ही में हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल के कार्यालय स्थानान्तरण के दौरान कुछ ऐसे ही कागजात मानो स्वत: खुलकर कुछ कहना चाह रहे हों। जैसे ही मेडिकेयर न्यूज के खोजी पत्रकार की नजर पड़ी, सबूतों को अपने कैमरे की सलाखों में गिफ्तार कर लिया।

मामला चौकाने वाला मिला। जब गहराई से जांचा तो वर्ष 2014 में  जारी कई वॉउचर मिले जिन पर 22000 रुपये तथा 55000 रुपये नकद अधिवक्ताओं को दिये गए। नियमानुसार यदि काम पारदर्शिता से किया हो तो सारी देनदारियां चेक के माध्यम से ही होती हैं। यदि कैश देना भी हो तो लिमिट 20,000 से कम ही होती है। ऐसे में 22,000 व 55,000 की रसीदें बता रही थी कि गड़बड़ है। क्या अधिवक्ताओं के बैंक अकाउंट नहीं हैं या वे बैंक अकाउंट की जानकारी छुपाना चाहते थे। इन्हीं रसीदों में से एक नाम बीएस अग्रवाल का था, जिनके नाम 4 रसीदें थी, उन पर बीएस अग्रवाल के हस्ताक्षर भी थे परन्तु चारों हस्ताक्षर आपस में पूर्णत: भिन्न भिन्न थे। इन हस्ताक्षरों के बारे बी.एस. अग्रवाल के कार्यालय में मौजूद सहकर्मी ने बताया कि ये हस्ताक्षर अधिवक्ता बी.एस. अग्रवाल के नही हैं। जब सहकर्मी ने अग्रवाल से बात की तो उन्होंने बताया कि इन रसीदों के जाली होने की सूचना वे स्वयं राज्य विजिलेंस को लिखित रूप से दे चुके हैं ।

एक रसीद अधिवक्ता एम.एल. मिर्चिया द्वारा हस्ताक्षरित थी, जिसके माध्यम से 55,000 रुपए दिए गए। ये रसीद भी वर्ष 2014 के वाऊचर से मेल खाती थी। जब अधिवक्ता एम.एल. मिर्चिया से सम्पर्क करने उनके कार्यालय पहुंचा तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि 2014 में हस्ताक्षर करने वाले अधिवक्ता एम.एल. मिर्चिया का स्वर्गवास तो फरवरी 2002 में हो गया था कार्यालय कर्मियों ने एम.एल. मिर्चिया का मृत्यु प्रमाण पत्र भी उपलब्ध करवाया और उनके हस्ताक्षरों को भी झुठला दिया। सवाल उठता है कि मिर्चिया के निधन के बाद उनके हस्ताक्षर करने कौन आया, जिसके हस्ताक्षरों को तत्कालीन चेयरमैन के. सी. गोयल ने भी काउंटर साइन किया। क्या ये मान लिया जाए कि  के.सी. गोयल के समक्ष अधिवक्ता एम.एल.मिर्चिया स्वयं आये, वो भी 55,000 की रकम कैश लेने। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गोयल अधिवक्ता मिर्चिया को जानते नहीं थे, जिन्होंने काउंसिल का केस लड़ा। वे मिर्चिया को पहचान नहीं पाए या यहां घोटाला हो गया? सम्भवत: पहली बार कोई अपनी रकम लेने स्वर्ग से जमीन पर हरियाणा स्टेट फार्मेसी कॉउंसिल आया। ये अभी तक स्पष्ट नही हुआ। क्या कारण थे कि के.सी. गोयल को इन 5 वाउचरों के माध्यम से 2 लाख 9 हजाार रुपये कैश देने पड़े। इस बारे में गोयल को सम्पर्क करने की कोशिश की तो उनका मोबाइल कवरेज क्षेत्र से बाहर मिला।

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