दवाओं के ज्यादा दाम पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने महंगी दवाइयों के नाम पर लूट को लेकर चिंता जताई है। हाईकोर्ट ने कहा कि मरीजों को कई गुणा ज्यादा रेट पर दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं। एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने कहा कि पी.जी.आई. जैसे संस्थान में मरीजों की भरमार है।
इसके चलते लोग निजी अस्पताल में जाते हैं जहां एक ही दवाई अलग-अलग दामों पर बेची जाती है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिकाओं की देश में सख्त जरूरत है, क्योंकि कैमिस्ट शॉप संचालक कहीं दवाइयों पर छूट दे रहे हैं और कहीं एम.आर.पी. पर बेची जा रही हैं। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार एवं नैशनल फार्मासिटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी.पी.ए.) से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। याची पक्ष के वकील सरदविंद्र गोयल ने कहा कि डाक्टरों का रवैया मेडिकल प्रोफेशन के खिलाफ है और मरीजों को लूटने का तरीका है। सामान्यत: दवाइयों पर छूट दी जाती है लेकिन डाक्टर के बताए मेडिकल स्टोर पर कमीशन पहले से ही तय होता है। ऐसे में मरीजों को महंगे दामों पर दवाई खरीदनी पड़ती हैं। अगली सुनवाई 16 मई को होगी।
याचिका में कहा गया कि निजी अस्पतालों को दवाइयों की सप्लाई से जुड़ा लाभ कमाने न दिया जाए क्योंकि वह पहले से ही बैड, परामर्श, नर्सिंग और ऑप्रेशन थिएटर चार्ज वसूल रहे हैं। निजी अस्पतालों को मरीज को बाहरी कैमिस्ट शॉप से दवाइयां खरीदने से नहीं रोकना चाहिए। निजी अस्पताल मार्केट से काफी अधिक रेट में दवाइयां बेचते हैं। यह अन्यायोचित है और ऐसे में गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।
हाईकोर्ट को अथॉरिटी की रिपोर्ट बारे भी अवगत करवाया गया। इसके मुताबिक निजी अस्पताल खरीदी दवाइयों को 1700 प्रतिशत बढ़ौतरी के रेट से बेचते हैं। इन आरोपों को लेकर वैटरनरी कॉलेज, हिसार में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हिसार निवासी डा. संदीप कुमार गुप्ता ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार, पंजाब सरकार एवं नैशनल फार्मासिटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी, डिपार्टमैंट ऑफ फार्मासिटिकल्स, नई दिल्ली को पार्टी बनाया है। वहीं, सरकार की ओर से गठित कमेटी को जांच के निर्देश दिए जाएं ताकि निजी अस्पतालों की ओर से वसूली जाने वाली अतिरिक्त रकम का पता लगा रिकवर कर मरीजों को वापस दिलवाई जा सके व ओवर चार्जिंग के नुक्सान को रोका जा सके।
हाईकोर्ट में दाखिल हुई जनहित याचिका में निजी अस्पतालों में बिकने वाली दवाओं के जरिए मरीजों को लूटने की बात कही गई है लेकिन हकीकत यह है कि सरकारी अस्पतालों में खुली कैमिस्ट शॉप्स में भी इस तरह का खेल चल रहा है। चंडीगढ़ में पी.जी.आई. और जी.एम.सी.एच. में भारी भरकम किराया लेकर दवा विक्रेताओं को दुकानें खुलवाई गई हैं, जो मनमाने दाम वसूल रहे हैं। एक ही दवा एक ही साल्ट अलग-अलग कम्पनियों के नाम से बिकती है जिनके दामों में 20 गुना तक का अंतर होता है। इमरजेंसी में आए मरीज को जल्द दवाएं चाहिए होती हैं इसलिए तीमारदार दवा विक्रेताओं से मोल-भाव नहीं करते। वे नहीं जानते कि जिस दवा के वे 1000 रुपए दे रहे हैं, उसका असल दाम 60 रुपए है।
पी.जी.आई. में रिएलिटी चैक में यह सामने आ चुका है जिसका जवाब पी.जी.आई. प्रशासन के पास भी नहीं। पी.जी.आई. में इमरजेंसी में सरकारी दवा की दुकान नहीं है, जिसका फायदा प्राइवेट दवा विक्रेता उठा रहे हैं। यही नहीं, कई डॉक्टर भी किसी एक दवा विक्रेता का नाम सुझाकर महंगी दवाएं वहां से लाने को कहते हैं, जिनकी कमीशन फिक्स है। वहीं, इस मामले में पी.जी.आई. के निदेशक प्रो. जगत राम ने कहा कि वह इस संबंध में जल्द ही नियम बनाकर सख्ती करेंगे और जेनरिक दवाओं की सूचि व रेट फिक्स करवाएंगे।
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