एलोपैथिक दवा केे इस्तेमाल में बरतें सावधानी

चंडीगढ़। एलोपैथिक दवाइयां शरीर पर तुरंत असर करती हैं। इस कारण ये दवा ज्यादा प्रयोग में ली जाती हैं। आज के युग में एलोपैथिक दवाइयों का प्रचलन बहुत ज्यादा है तथा इनको समझने और लेने में किसी से भी गलती हो सकती है। इन दवाइयों के सम्बन्ध में हमें सबसे पहले तो दवा की एक्सपायरी डेट जरूर जाँचनी चाहिए तथा एक्सपायर्ड दवाओं को घर में न रखकर फेंक देना चाहिए।
अवधिपार दवाओं की गुणवत्ता व प्रभाव दोनों समाप्त हो जाते हैं तथा ये हमारे शरीर पर कई तरह के दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी डाल सकती हैं। हमें दवा की खुराक और मात्रा की भी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। तय मात्रा से अधिक दवा (ओवरडोज) शरीर पर जहर के समान कार्य कर सकती है। दवाओं का भंडारण (स्टोरेज) काफी महत्वपूर्ण होता है। अधिक तापमान पर बहुत सी दवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है और वे खराब भी हो सकती हैं। अलग-अलग दवाओं का भण्डारण अलग-अलग तापमान पर होता है। जैसे किसी को कूल प्लेस पर तथा किसी को कोल्ड प्लेस पर रखा जाता है। कुछ ऐसी दवाएँ भी होती है जिनके लिए फ्रिज की भी आवश्यकता पड़ती है।
अत: हमें विभिन्न भण्डारण तापमानों (स्टोरेज टेम्परेचर्स) के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए। कमरे का तापमान (रूम टेम्परेचर) का मतलब पच्चीस डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान, कूल प्लेस का मतलब ऐसा स्थान जिसका तापमान आठ से पच्चीस डिग्री सेल्सियस के बीच हो, कोल्ड प्लेस का मतलब ऐसा स्थान जिसका तापमान दो से लेकर आठ डिग्री सेल्सियस के बीच हो।
अधिकतर दवाएँ जैसे टेबलेट, कैप्सूल और सिरप, आदि को कमरे के तापमान पर ऐसी जगह रखना चाहिए जहाँ वातावरण में नमीं न हो और उन पर सूर्य की किरणें सीधी न पड़ती हों। बहुत से इंजेक्शन, ब्लड प्रोडक्ट्स, सपोजिट्री, आदि को सिर्फ और सिर्फ फ्रिज में ही रखना चाहिए अन्यथा ये खराब हो जाते हैं।
टेबलेट और कैप्सूल के रूप में उपलब्ध दवा को खाने के पश्चात अच्छी तरह से पानी पीना चाहिए ताकि वह पूरी तरह से पेट में चली जाये। दवा को सिर्फ पानी के साथ ही लेना चाहिए, अन्य किसी भी पेय पदार्थ के साथ नहीं। कई लोग अपनी मर्जी से ही दवा को दूध या फिर चाय के साथ ले लेते हैं जो गलत है क्योंकि बहुत सी दवाओं का असर दूध के साथ कम हो जाता है।
टेबलेट के टुकड़े करके भी कभी नहीं खाना चाहिए क्योंकि बहुत सी टेबलेट्स पर एक केमिकल की पतली परत (एंटरिक कोटिंग ) चढ़ाई जाती है ताकि उस टेबलेट को पेट के अम्ल से बचाया जा सके तथा वह पेट में न घुलकर आंतों में घुले। इस प्रकार की दवाएँ आंतों में पहुँचकर ही अपना प्रभाव दिखा पाती है और अगर ये पेट में ही घुल जाएँगी तो पेट का अम्ल इन्हें प्रभावहीन बना देता है।
अधिकतर दवाएँ भोजन करने के पश्चात लेनी चाहिए ताकि उनका असर अधिक वक्त तक रहने के साथ-साथ पेट में इर्रिटेशन भी कम से कम हो। जैसे दर्द और बुखार की दवाएँ हमेशा खाना खाने के पश्चात ही लेनी चाहिए वर्ना पेट में घाव होने की संभावनाएँ अधिक हो जाती। कुछ दवा खाली पेट यानि बिना कुछ खाए या खाना खाने से कुछ समय पूर्व लेने की होती है जैसे एसिडिटी को रोकने वाली दवाओं में ओमेप्राजोल और एंटीबायोटिक्स में अजीथ्रोमाइसिन। दवा लेने का समय अंतराल भी निश्चित होता है।
जैसे कुछ दवाएँ दिन में एक बार, कुछ दिन में दो बार तथा कुछ दिन में तीन या चार बार लेने की होती है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि दिन में एक बार का मतलब हर चौबीस घंटे के अंतराल पर, दिन में दो बार का मतलब हर बारह घंटे के अंतराल पर, दिन में तीन बार का मतलब हर आठ घंटे के अंतराल पर और चार बार का मतलब हर छ: घंटे के अंतराल पर। बहुत से लोग दिन में तीन बार का मतलब सुबह, दोपहर और शाम से समझते हैं जो कि पूर्णतया गलत है। अत: हमें दवाओं का प्रयोग बहुत ज्यादा सावधानी के साथ करना चाहिए तथा बच्चों तक इनकी पहुँच नहीं होनी चाहिए।
– साभार : ज्वारभाटा
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