छुट्टी पर फार्मासिस्ट

उदयपुर। एमबी अस्पताल में मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के काउंटर्स पर नियुक्त फार्मासिस्ट खुद तफरी मार रहे हैं, वहीं उनके स्थान पर 8वीं, 10वीं पास हेल्पर, कम्प्यूटर ऑपरेटर और नॉन-मेडिकोज व्यक्ति मरीजों को दवा बांट रहे हैं। इन हेल्परों-ऑपरेटरों को बांटी जाने वाली दवाओं के नुकसान-फायदे तक पता नहीं है। ऐसे में मरीजों को स्वास्थ्य हानि का खतरा बना हुआ है। हैरानी वाली बात यह है कि मरीज, तीमारदार या अस्पताल प्रबंधन इन हेल्परों और ऑपरेटरों को दवाई देते हुए बाहर से देख न ले, इसके लिए बाकायदा फार्मासिस्टों ने दवा केंद्रों को पर्दों/कार्डबोर्ड आदि से छुपा दिया है। हैरानी की बात यह भी है कि अस्पताल के आला अधिकारी यहां से दिन में कई बार गुजरते हैं लेकिन किसी का ध्यान इन पर नहीं जाता।
गौरतलब है कि एमबी चिकित्सालय में रोजाना पांच हजार से ज्यादा मरीज आते हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज ज्यादा होते हैं जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। ऐसे में फार्मासिस्ट की ड्यूटी बनती है कि वे मरीजों को दवाएं देते समय टेबलेट्स पर लिखें और समझाएं कि कौन-सी दवा कब और कितनी लेनी हैं। कुछ खाकर या फिर भूखे पेट खानी है। इसके अलावा मरीज दवाई को लेकर कई तरह के सवाल भी पूछते हैं जिसे सही तरीके से बताया जाना जरूरी है।
आरएनटी के डॉक्टरों ने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर हेल्पर, कम्प्यूटर ऑपरेटर या अन्य कोई नॉनमेडिकोज गलती से मरीज को DIAMOL की जगह DIONIL टेबलेट दे दे तो रोगी की जान जा सकती है। एक्टिवेट चारकोल की DIAMOL टेबलेट एक दिन में ही 16 दी जाती हैं ताकि वे सोनोग्राफी, एक्स-रे के लिए तैयार हो सकें। अगर DIAMOL की जगह गलती से दी गई डायबिटीज की DIONIL टेबलेट मरीज एक दिन में ही 16 खा ले तो रोगी का शुगर निम्न स्तर पर पहुंच जाएगा। यह तो दो टेबलेट का उदाहरण है। नि:शुल्क दवा योजना में तो 700 से ज्यादा दवाएं मिलती हैं। हैवी डोज से उल्टी, दस्त, पेट दर्द, जी घबराना, शुगर, बीपी का गिर जाना, चक्करों से गिर जाना, बेहोश होने जैसी भी परेशानी हो जाती है।
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