मोदी के बाद रामदेव, अभिषेक बच्चन और सांसदों की ‘किक’ लेकिन गर्भ में बेटी अब भी डरी-सहमी

गर्भपात के मौजूदा कानून में नहीं बदलाव की गुंजाइश: डॉ. ए.एल. शारदा  
नई दिल्ली: जिस वक्त राजधानी के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ को सफल बनाने के उद्देश्य से बॉलीवुड सितारों और सांसदों के बीच हुए फुटबाल मैच की सुर्खिया उड़ रही थी, उसी वक्त एक प्रमुख दैनिक अखबार के स्टिंग ऑपरेशन में खुलेआम गर्भपात किट बेचे जाने का सनसनीखेज खुलासा हुआ। यह काला सच सामने आया उस राजस्थान के जोधपुर में जिसकी बागडोर महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हाथ में है। प्रधानमंत्री के सपनों को उनकी पार्टी की सरकार में ही पलीता लग रहा है।
एमटीपी एक्ट 2002 के मुताबिक बिना डॉक्टर की पर्ची के गर्भपात की दवा बेचना संगीन अपराध है और ऐसा करते हुए पाए जाने पर 2 से 7 वर्ष तक कारावास की सजा है। लेकिन राजस्थान सरकार केस्वास्थ्य विभाग की ढिलाई से गर्भपात का धंधा करने वाले मालामाल हो रहे हैं। सूत्रों की मानें तो औषधि विभाग के अधिकारियों को सूचनाएं खूब मिलती है, लेकिन उस वजह का पता नहीं चल रहा, जिससे वह कार्रवाई में पिछड़ रहे हैं।
सरकार तो यहां तक दावा करती है कि मेडिकल स्टोर पर कोई भी दवा डॉक्टर की पर्ची के बिना नहीं बिकती है, लेकिन जमीन पर यह दावा बेदम नजर आता है। डॉक्टरों के मुताबिक, एमटीपी किट में माइफप्रिस्टोन और माइसोप्रिस्टोल ड्रग होता है जिससे मिल कर एमटीपी किट तैयार होती है। इसका गर्भपात में इस्तेमाल किया जाता है।
यह हकीकत केवल राजस्थान की नहीं है, राजधानी से सटे तमाम राज्यों में यह घृणित और गोरखधंधा बेतरतीब बढ़ रहा है। सरकारें और औषधि विभाग इन्हें रोकने में नाकाम साबित हो रहे हैं। मेडिकेयर ने ताजा अंक में बड़े रहस्य से पर्दा उठाते हुए बताया था कि कैसे हरियाणा में कड़े कानूनों के बीच घर बैठे बिना भय ऑनलाइन जेंडर प्रिडिक्शन किट मंगवा कर गर्भ में भू्रण लिंग जांच कर सकते हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने इसे गंभीरता से लेते हुए छानबीन आरंभ कर दी है, नतीजे का इंतजार है। वैसे राज्य के तमाम जिलों में एमटीपी किट की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। रोहतक और भिवानी जिले के कई बाजारों में बड़े अड्डे हैं, जहां सुलभ गर्भपात की दवाएं उपलब्ध हो जाती हैं। राज्य के खूफिया विभाग की कार्रवाई में यह बात सामने भी आई है।
महानगरों में गैरकानूनी ढंग से एमटीपी किट की बिक्री और लिंग जांच का कारोबार दिन-प्रतिदिन रौनक में आ रहा है। आए दिन अखबारों और चैनलों की सुर्खियां में इन खबरों का बाजार गर्म रहता है। गैर सरकारी संगठनों के सर्वेक्षण की मानें तो यह धंधा ड्रग विभाग-डॉक्टर और दलालों के गठजोड़ से चलता है और दवा व्यापारी मुनाफे के चक्कर में इन तीनों की ‘पर्याप्त सेवा’ करते हैं।
इधर, दुष्कर्म पीडि़ता की जान के खतरे को मद्देनजर रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कानून से परे गर्भपात की इजाजत दी है। इसके बाद से कानून में संशोधन को लेकर आवाज और बहस शुरू हो गई है।

पॉपुलेशन फस्र्ट की निदेशक एवं लिंगानुपात-महिला अधिकारों को लेकर हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय से संबद्ध
डॉ.ए.एल.शारदा कहती हैं कि गर्भपात को लेकर मौजूदा कानून को बनाए रखना जरूरी है। आज भी असुरक्षित गर्भपात की वजह से हर साल देश में बड़ी तादाद में महिलाओं की मौत होती है। वैसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट-1971 के मुताबिक, बात जान जोखिम की हो तो 20 सप्ताह बाद भी गर्भपात संभव है।
आंकड़े देखें तो, पिछले सालों में लिंग परीक्षण के मामलों में तेजी और बालिका लिंगानुपात में गिरावट आई है। सख्त कानून होते हुए भी उनका कड़ाई से पालन नहीं होना इस स्थिति का कारण है। सख्त कानून की पैरवी करते हुए डॉ. शारदा कहती हैं कि सरकार और प्रशासन ने कर्तव्यनिष्ठा में कोताही बरती तो कन्याओं का गर्भ में सुरक्षित रहना मुश्किल हो जाएगा।
डॉ. शारदा के मुताबिक, इस बात में कोई संदेह नहीं कि प्रसव पूर्व निदान की तकनीक (विनियमन और दुरुपयोग निवारण) अधिनियम लागू होने के बाद लिंगानुपात में सुधार हुआ है लेकिन इनको पूरी तरह महिलाओं के पक्ष में नहीं कहा जा सकता। जरूरी है कि मौजूदा कानूनों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
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