दवाइयां होंगी सस्ती

मुंबई। सरकार कुछ और दवाओं के दाम तय करने जा रही है। अगर ऐसा हुआ तो भारतीय दवा बाजार की करीब एक चौथाई दवाइयां कीमत नियंत्रण के दायरे में आ जाएंगी। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई चीजों पर विचार किया जा रहा है और करीब एक महीने में स्थिति ज्यादा साफ हो पाएगी। फिलहाल दवा कीमत नियंत्रण आदेश 2013 में संशोधन करने पर विचार किया जा रहा है कि दवाओं पर 5एमजी, 10एमजी जैसे स्ट्रेंथ बताने वाले संकेत हटाए जाएं या नहीं।
गौरतलब है कि वर्तमान में 850 से ज्यादा जरूरी दवाओं की अधिकतम कीमतें सरकार ही तय करती है। आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल दवाओं की अधिकतम कीमतों में हर साल थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर बढ़ोतरी की जा सकती है। इस सूची से बाहर जो दवाएं हैं, उनकी कीमतों में हर साल करीब 10 फीसदी बढ़ोतरी की मंजूरी है।
बता दें कि भारतीय दवा बाजार करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें से करीब 17 फीसदी अब कीमत नियंत्रण के दायरे में है। इस समय किसी दवा पर कीमत नियमन तभी लागू होता है, जब वह एक निर्धारित स्ट्रेंथ में हो और आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची के दायरे में आती हो। दरअसल, इससे दवा विनिर्माता कंपनियों को सूची में शामिल दवाओं को अलग-अलग स्ट्रेंथ में बेचने का रास्ता मिल जाता है। माना कि कीमत नियंत्रण आदेश में 100 एमजी स्ट्रेंथ का जिक्र किया गया है, लेकिन दवा विनिर्माता डॉक्टरों या खुदरा विक्रेताओं को प्रोत्साहन देकर उसी दवा के 250 एमजी वाले फॉर्म की बिक्री को बढ़ावा दे सकता है।
दवा उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर दवा पर स्ट्रेंथ के उल्लेख को खत्म कर दिया जाता है तो आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची का दायरा करीब 40 फीसदी बढ़ जाएगा। इससे करीब 24 फीसदी भारतीय दवा बाजार कीमत नियंत्रण के दायरे में आ जाएगा, जो इस समय 17 फीसदी है। एक अग्रणी दवा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अंतिम दवा नीति को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है।  दवा उद्योग से जुड़े लोगों ने दावा किया कि भारत में दवाइयां विकसित देशों के मुकाबले काफी सस्ती हैं। अगर और दवाओं को कीमत नियंत्रण के तहत लाया जाता है तो जरूरी नहीं कि इससे दवाओं की बिक्री में बढ़ोतरी हो। इससे बिक्री घट भी सकती है क्योंकि दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी से बिक्री पर खास असर नहीं पड़ता है।
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