सेकेंड हैंड मेडिकल उपकरणों के इंपोर्ट पर बैन की आहट

नई दिल्ली: एक्सटेंडेड वारंटी वाले 3 साल या इससे पुराने किसी भी मेडिकल उपकरण के इंपोर्ट पर रोक लगेगी। इसमें MRI, CT स्कैन और अल्ट्रासाउंड के लिए इस्तेमाल होने वाली सेकंड हैंड मशीनों के साथ दूसरे मेडिकल उपकरण भी शामिल हैं। शीघ्र एक फाइनल प्रपोजल कॉमर्स मिनिस्ट्री के पास भेजा जाएगा। माना जा रहा है कि शीतकालीन सत्र में यह बिल संसद में पेश होगा। मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री का कहना है कि ऐसा होने से डोमेस्टिक इंडस्ट्री को फायदा होगा, वहीं हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर्स का कहना है कि इससे जांच कराना महंगा हो जाएगा।
पुराने उपकरणों के इंपोर्ट को लेकर खासतौर से टियर टू और टियर थ्री शहरों से शिकायतें आती रहती हैं। जैसे- इनकी क्षमता कमजोर हो जाती है और जांच रिपोर्ट प्रभावित होती है। रेडियोलॉजी मशीनों के पुरानी होने से रेडिएशन की भी परेशानी होती है। सरकार की चिंता यह है कि इंपोर्ट होने वाले पुराने उपकरण की सही रिपोर्ट न मिलने से उनके पास ऐसी मशीनों का डाटा नहीं रहता है। वहीं इंडस्ट्री का कहना है कि सेकंड हैंड इंपोर्ट बढऩे से डोमेस्टिक इंडस्ट्री को बढ़ावा नहीं मिल रहा है।
डिपार्टमेंट ऑफ फॉर्मास्युटिकल के जिम्मेदार सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक्सटेंडेड वारंटी वाले मेडिकल उपकरण बैन करने को लेकर इंडस्ट्री, हेल्थ सर्विस प्रावाइडर्स, हेल्थ, फाइनेंस और एन्वायरनमेंट मिनिस्ट्री आदि सबके विचार और सूझाव शामिल किए गए हैं। नए प्रपोजल में कहा गया है कि 3 साल या पुराने मेडिकल उपकरण पर बैन लगना चाहिए। यह प्रपोजल अब कॉमर्स मिनिस्ट्री के पास भेजा जाएगा।
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के फोरम को-ऑर्डिनेटर राजीव नाथ कहते हैं कि भारत में इंपोर्ट होने वाली इस तरह की मेडिकल टेक्नोलॉजी में  35 फीसदी के करीब सेकंड हैंड होती है। हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर्स को यह सस्ती मिल जाती हैं। लेकिन इन्हें लेकर सेफ्टी और एन्वायरनमेंट संबंधी विषयों पर उंगलियां उठती रहती है।
वहीं, जरूरतें पूरी होने से सरकार का डोमेस्टिक इंडस्ट्री पर भी ध्यान कम रहता है। इंपोर्ट कम होने से देश की मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को रेग्युलेट करने पर सरकार का ध्यान जाएगा और धीरे-धीरे इंपोर्ट पर निर्भरता कम होगी। जरूरत के उपकरण कम कीमत पर अपने ही देश में बेहतर मिल सकेंगे।
नए-पुराने उपकरण/मशीनों में फर्क 
  • MRI नई मशीन 3 से 5 करोड़ रुपए
  • CT स्कैन की नई मशीन 1 से 2 करोड़ में
  • अल्ट्रासाउंड और एक्सरे की नई मशीन 20 लाख रुपए में
  • सेकंड हैंड मशीन 50 फीसदी कीमत पर मिल जाती है
सरकार की चिंता
सरकार की परेशानी यह है कि बहुत से अस्पताल और डॉक्टर सस्ती होने की वजह से सेकंड हैंड मशीन दूसरे देशों से मंगाते हैं, लेकिन इसकी रिपोर्ट नहीं देते हैं। इससे सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है कि कितने सेकंड हैंड मेडिकल डिवाइस देश में फंक्शनल हैं। वहीं कई शहरों से इन मशीनों की क्षमता और गलत रिपोर्ट आने की भी शिकायतें आ रही हैं। इसके साथ ही मशीन पुरानी होने पर रेडिएशन को लेकर भी चिंताएं हैं।
मरीज पर बढ़ेगा आर्थिक बोझ
इस मसले पर हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर्स का कहना है कि अगर हमें एक्सटेंडेड वारंटी वाले मेडिकल उपकरण सस्ती कीमत पर मिल रहे हैं तो इसमें परेशानी क्या है। इंडियन रेडियोलॉजी एंड इमेजिंग एसोसिएशन के सदस्य की मानें तो सरकार सेकंड हैंड मशीनों का इंपोर्ट बंद करती है तो इसका असर मरीजों पर आएगा। जरूरत पर नई मशीनें लेनी पड़ेंगी, जिसकी कीमत तीन गुनी तक होगी। ऐसे में MRI, एक्स-रे, CT स्कैन और अल्ट्रासाउंड जैसी जांच की कीमत बढ़ जाएगी।
बाहर से आते हैं 80 फीसदी उपकरण 
  • पिछले दिनों लैंसेट की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में मौजूद 80 फीसदी मेडिकल डिवाइस दूसरे देशों से मंगाए जाते हैं।
  • भारत में मेडिकल डिवाइस का सालाना कारोबार 35000 करोड़ रुपए का है, जिसमें से 27000 करोड़ रुपए के मेडिकल डिवाइस दूसरे देशों से इंपोर्ट किए जाते हैं।
  • इंपोर्ट होने वाले मेडिकल डिवाइस में 30 फीसदी सेकंड हैंड होते हैं। मेडिकल डिवाइस के मामले में चीन सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है।
मेड इन इंडिया को बढ़ावा
  • सरकार ने डोमेस्टिक इंडस्ट्री को रेग्युलेट करने के लिए मकैनि’म पर काम रही है, जिससे मैन्युफैक्चरर्स को बढ़ावा मिले।
  • मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को बढ़ावा देकर सरकार इंपोर्ट पर निर्भरता कम करना चाहती है।
  • सरकार मानती हैं कि पिछले 2 साल में डोमेस्टिक प्रोडक्शन 200 करोड़ डॉलर रहा है।
  • जहां तक कीमतों की बात है, जीएसटी लागू होते ही मेडिकल उपकरण की कीमतें 12 फीसदी  कम होंगी, जिससे जांच  रेट किफायती होंगे।
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