नई दिल्ली। राज्य उपभोक्ता आयोग ने इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। हालांकि शिकायतकर्ताओं ने 75 लाख रुपए का मुआवजा मांगा था। आयोग में हापुड़ निवासी शारदा त्यागी व अन्य ने आरोप लगाया था कि अस्पताल की लापरवाही से उनके पति सुरेंद्र त्यागी की मौत हो गई थी। आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और विशेषज्ञ की राय लेने के बाद पाया कि अस्पताल ने इलाज में लापरवाही नहीं की। हालांकि मरीज को जो गंभीर बीमारियां थीं, उनके बारे में परिजनों को नहीं बताकर अंधेरे में रखा। आयोग ने कहा कि अस्पताल ने सेवा में कोताही बरती है। इसका दोषी मानते हुए आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ताओं को अस्पताल और कंसलटेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राकेश अग्रवाल संयुक्त रूप से 30 दिन में 10 लाख रुपये बतौर मुआवजा दें।
शिकायत में कहा गया कि अस्पताल में 10 अक्टूबर 2002 को सुरेंद्र को लाया गया था। उस समय अस्पताल की ओर से बताया गया कि मरीज को गिल्लन-र्बे सिंड्रोम है। (यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती है और उन्हें नष्ट करती है।) अस्पताल ने इलाज पर करीब ढाई लाख रुपये खर्च होने की बात कही। इसके बाद गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल में सुरेंद्र की फिजियोथेरेपी शुरू हुई। वहां गैस और सांस लेने की दिक्कत होने लगी तो डॉ. राकेश अग्रवाल की सलाह पर इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में सुरेंद्र को वेंटीलेटर पर रखा गया। दिसंबर 2002 में उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट किया गया। यहां उन पर ध्यान नहीं दिया गया। उन्हें कई और बीमारियों ने जकड़ लिया। अस्पताल ने 21 अप्रैल 2004 को मरीज को डिस्चार्ज कर दिया। एंबुलेंस में वेंटीलेटर पर रखकर सुरेंद्र को घर भेज दिया गया और उसी दिन वेंटीलेटर हटने के 15 मिनट बाद उनकी मौत हो गई।