नई दिल्ली। कोरोना महामारी के इस दौर में अस्पताल अपना अस्तित्व बचाने में जुटे हैं। दरअसल, अस्पतालों में आने वाले मरीजों की संख्या घटकर 30 फीसदी रह गई है। इन अस्पतालों में से ज्यादातर फिर से खुल चुके हैं। उनमें कुछ अस्पतालों ने अपनी एक इमारत को विशेष कोविड-19 अस्पताल बनाया है। अस्पतालों की आमदनी पर निश्चित रूप से असर पड़ा है। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) कारोबार 70 से 80 फीसदी कम हो गया है। वहीं सुरक्षा साजो-सामान पर खर्च में 20 फीसदी इजाफा हुआ है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और बिहार में अस्पताल चलाने वाले मेडिका ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के चेयरमैन आलोक राय का मानना है कि अगर आगे भी यही हालात बने रहे तो अस्पताल शृंखलाएं ज्यादा से ज्यादा तीन महीने और घाटा उठा सकती हैं। राय ने कहा कि हमारा राजस्व 70 फीसदी घटा है जबकि हमारा परिचालन खर्च 20 फीसदी बढ़ा है। ऐसे में कोरोना संकट और कार्यशील पूंजी की तात्कालिक जरूरत के वित्तीय प्रबंधन में वेतन पर सबसे पहले असर पड़ा है। ज्यादातर अस्पतालों में वरिष्ठ प्रबंधन और कार्याधिकारियों के वेतन में कटौती हुई है। उदाहरण के लिए अपोलो हॉस्पिटल्स में शीर्ष स्तर के अधिकारियों के वेतन में 10 से 20 फीसदी कटौती हुई है। दिल्ली के आकाश हेल्थकेयर में भी अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया जा रहा है लेकिन शीर्ष अधिकारियों ने अपने वेतन पैकेज में खासी कमी की है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से अस्पताल जब वित्तीय संस्थानों के पास ऋण चुकाने की मोहलत के लिए पहुंचेंगे तो उन्हें अपना इरादा जाहिर करने में मदद मिलेगी।