बरेली। दुनियाभर में एक बार फिर से हाहाकार मचाने वाले कोविड-19 के टीके के बाद अब देश में दवा बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। देश में इसके लिए बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी) रुड़की को संयुक्त रूप से शोध का जिम्मा मिला। जोकि एक माह पहले शुरू हो चुका है। आइवीआरआइ के संयुक्त निदेशक- डॉ.केपी सिंह ने बताया कि आइवीआरआइ के पशु रोग निदान एवं अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ.गौरव शर्मा और आइआइटी रुड़की की टीम मिलकर कोरोना की दवा खोज रहे हैं। प्रोजेक्ट जल्द से जल्द पूरा करने को टीम जुटी है।
दुनिया में अभी कोविड-19 संक्रमण नियंत्रित नहीं हो पा रहा है। इसके खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली वैक्सीन ही तैयार हुई है। खतरनाक वायरस को मारने वाली दवा तैयार करने में कहीं सफलता नहीं मिली है। केंद्र सरकार ने देश में ही दवा पर शोध के प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी है। इसके लिए एक करोड़ रुपये मंजूर होने के बाद आइवीआरआइ बरेली व आइआइटी रुड़की और प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी कर चुके हैं। डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी का साइंस एंड इंजीनियरिग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) शोध प्रोजेक्ट पर नजर रखेगा।
कोरोना संक्रमण सन 2020 में जोर पकड़ने के बाद ही डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने कोविड की दवा बनाने के लिए प्रतिष्ठित संस्थानों से दवा पर शोध को प्रस्ताव मांगे थे। देशभर से करीब एक हजार ऑनलाइन प्रस्ताव पहुंचे थे। इनमें से आइवीआरआइ बरेली और आइआइटी रुड़की का संयुक्त प्रस्ताव बेहतर माना गया।
आइआइटी रुड़की में बायोटेक्नोलॉजी विभाग के डॉ.प्रमेंद्र कुमार और डॉ.शैली तोमर की टीम कंप्यूटर बेस्ड मॉडल पर करीब 12 से 14 हजार दवाओं और उनके तत्वों की स्क्रीनिग कर रही है। ये वो होंगी, जिनका उपयोग कोरोना जैसे अन्य वायरस या किसी अन्य बीमारी के इलाज में उपयोग किया जाता है। इन्हें शार्टलिस्ट करने के बाद की कंप्यूटर मैचिग कराई जाएगी। आइवीआरआइ के पशु रोग निदान एवं वैज्ञानिकों को इनकी जानकारी दी जाएगी।
टीम में शामिल आइवीआरआइ के वैज्ञानिक डॉ.गौरव शर्मा बताते हैं कि कैडरेड में लगी बायो सेफ्टी लैब-3 (बीएसएल-3) में इस ड्रग के मॉलिक्यूल के अलग-अलग कांबिनेशन बनाकर कोविड वायरस पर टेस्ट किए जाएंगे। उदाहरण के तौर पर कोविड के इलाज में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन की दवा कुछ सफल रही है। हालांकि इसकी एंटी वायरल मंजूरी नहीं है। इसके कुछ मॉलिक्यूल्स (अणुओं) में एंटी वायरल एक्टिविटी होती है। अलग-अलग दवाओं के ऐसे ही अणुओं की स्क्रीनिग कर कोरोना वायरस के राइबो न्यूक्लिक एसिड (आरएनए) में शामिल घातक प्रोटीन के कवच को तोड़ उसे मारने वाली दवा का फार्मूला तैयार किया जाएगा। प्रोजेक्ट पूरा करने में एक वर्ष का समय लग सकता है। वर्जन..