नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के मेडिसिन डिपार्टमेंट में इलाज के दौरान सबसे ज्यादा मरीजों की मौत होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार एम्स के मेडिसिन डिपार्टमेंट में कुल 977 मरीजों की मौत हुई है, जो कुल मरने वालों का करीब 32 फीसदी है। एम्स प्रशासन के अनुसार यह चिंता की बात है, क्योंकि सर्जरी और कैंसर से भी ज्यादा मरीजों की मौत मेडिसिन डिपार्टमेंट में हो रही है। रिपोर्ट में मौत की वजह साफ नहीं है, लेकिन एक डॉक्टर का कहना है कि एम्स के रेफरल सेंटर हैं और ज्यादातर जगहों से मरीज को अंतिम स्टेज में यहां रेफर कर दिया जाता है, जिसके चलते यहां इलाज के दौरान मरीज की मौत हो जाती है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2016-17 में मेडिसिन के बाद सबसे ज्यादा मौत गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग में हुई है। इस डिपार्टमेंट में कुल 500 मरीजों की मौत हुई है, जिसमें से 233 मरीजों की मौत एडमिट होने के 48 घंटे के अंदर हो गई है। जानकारी के अनुसार एम्स में मेडिसिन के तीन अलग-अलग यूनिट हैं। पहली यूनिट में 367 मरीजों की मौत हुई है, जिसमें से 165 मरीजों की मौत एडमिशन के 48 घंटे के अंदर हुई। इसी प्रकार, यूनिट दो में 299 और यूनिट तीन में 311 की मौत हुई है।
मेडिसिन में कुल 977 मरीजों की मौत में से 433 की मौत 48 घंटे से पहले हो गई थी। मेन हॉस्पिटल में कुल 3035 मरीजों की मौत हुई है, इसमें से 1181 मरीज 48 घंटे से पहले और 1854 की मौत 48 घंटे बाद हुई है। इसी प्रकार, कार्डियो न्यूरो सेंटर में कुल 944 मरीजों की मौत हुई है जिसमें से 311 की मौत 48 घंटे के अंदर हुई है। इसमें से कार्डियोलॉजी में 311, कार्डिएक सर्जरी में 235, न्यूरोलॉजी में 236 और न्यूरोसर्जरी में 161 की मौत हुई है। डॉक्टरों का मानना है कि एम्स में मरीजों का प्रेशर होता है। कई बार रेफर मरीज को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है, बेड खाली नहीं होते हैं। जब तक उन्हें एडमिट किया जाता है तब तक उनकी बीमारी और बढ़ जाती है। इस वजह से कई मरीजों की मौत हो जाती है।