मधुमक्खी से मिलने वाला शहद जिस प्रकार कई बीमारियों में कारगर सिद्ध होता है, ठीक उसी तरह मधुमक्खी का डंक रोगमुक्ति का काम करता है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसन के शोध में सामने आया है कि मधुमक्खी के डंक में मिलने वाले मेलिट्टिन नामक विषैला तत्व एचआईवी वायरस के बढऩे की क्षमता को नष्ट करता है, वहीं इसके आणविक नैनोकण शरीर के सामान्य कणों को नुकसान पहुंचने से बचाते हैं। मधुमक्खी के डंक को ट्यूमर कोशकिाओं को नष्ट करने में भी उपयोगी माना जाता है। मधुमक्खी के डंक से एचआईवी का इलाज करने का यह शोध कुछ दिन पहले एंटीवायरल थेरेपी जनरल में छपा है।
हालांकि शोध में यह बात साबित हुई है कि मेलिट्टिन से लैस ये नैनोआणविक कण सामान्य कोशकिाओं को नुकसान नहीं पहुंचाते। ऐसा नैनोकणों की सतह से जुड़े होने के कारण होता है। जब ये नैनोकण सामान्य कणों, जिनका आकार बड़ा होता है, के संपर्क में आते हैं, तो वे कण स्वत: ही पीछे की ओर उछल जाते हैं। दूसरी ओर एचआईवी की कोशकिायें आकार में नैनोकणों से बहुत छोटी होती हैं, इसलिये वे आसानी से बम्पर में फिट हो जाती हैं, और नैनोकणों के संपर्क में आ जाती है, जहां मधुमक्खी का विषैला पदार्थ मौजूद होता है।
ज्यादातर एंटी – एचआईवी दवाओं में वायरस को फैलने से रोकने की पद्धति पर काम करती हैं। इस विरोध प्रतिकृति नीति में वायरस को रोकने की क्षमता नहीं होती। और वायरस के कई रूपों ने दवाओं का तोड़ निकाल लिया है। अब वे दवाओं के बावजूद अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं।
कैसे बचें –  इस शोध के आधार पर ऐसे इलाकों में जहां, एचआईवी बहुत सक्रिय है, एक नया यौनिक जैल इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे बचाव उपाय के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से शुरुआती संक्रमण से बचा जा सकता है और एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है।
आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग एचआईवी/एड्स पीडि़त हैं।  इनमें तीस लाख से अधकि की उम्र 15 वर्ष से कम है। हर दिन हजारों लोग एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार बन रहे हैं।