बद्दी। पहले से महंगाई से त्रस्त जनता को अब बीमारियों के इलाज के लिए भी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी। आने वाले दिनों में कोरोना के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं सहित अन्य आवश्यक दवाइयों की कीमत में बढ़त देखी जा सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है दवाएं बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी। बता दें कि दवाओं के कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स यानी एपीआई की कीमतों में कोरोना काल से पहले की तुलना में करीब 150 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसकी वजह से फार्मा इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। फार्मा कंपनियों को आयात भी काफी महंगा पड़ रहा है और साथ ही चीन की तरफ से सप्लाई में भी दिक्कतें आ रही हैं।
इन सबकी वजह से दवाओं की कीमतें बढ़ने की संभावना है। हो सकता है कि जनता को आवश्यक दवाओं की कमी से भी जूझना पड़े। वहीं पैकेजिंग मटीरियल की कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं। कोरोना के उपचार के लिए इस्तेमाल की जा रही फेबिपिराविर, आईवरमेक्टिन के रॉ मटीरियल की कीमतों में दोगुने से ज्यादा का इजाफा हो गया है। पैरासिटामोल के कच्चे माल की कीमत में बीते दो माह के अरसे में खासा उछाल आया है, जबकि निमुस्लाइड के रॉ मटीरियल की कीमत भी दोगुनी हो चुकी है।
इसके अलावा एजीथ्रोमाइसिन, ओरिंडाजोल सहित एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड के कच्चे माल की कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। दवा निर्माताओं का कहना है कि कच्चे माल की कालाबाजारी और सरकार की बेरुखी से कच्चे माल के कारोबारी मनमानी पर उतारू हैं, जिसके नतीजतन दवा निर्माण लागत बढ़कर दोगुनी हो गई है और नाम का मुनाफा बाकी रह गया है। दवा उद्यमियों का कहना है की सरकार भविष्य के लिए तो योजनाएं बना रही है लेकिन वर्तमान हालातो से निपटने के लिए कोई प्रभावी कदम नही उठाए जा रहे।
हिमाचल दवा निर्माता संघ के अध्यक्ष डा. राजेश गुप्ता ने एपीआई की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए निगरानी समूह का गठन करने की मांग करते हुए कहा कि जो लोग दवाओं के कच्चे माल की आपूर्ति करते हैं, विभाग उनका पूरा डाटा मेंटेन करे। इससे पता चलेगा कि वह किसी कीमत पर कच्चा माल खरीदता और आगे बेचता है। इसके अलावा सरकार वर्तमान हालातों से निपटने के लिए रोड मैप तैयार करे। सरकार को एपीआई की कीमतों पर कंट्रोल के लिए पॉलिसी बनानी चाहिए।
दवाओं की कीमतें सरकार के कंट्रोल में होने की वजह से कंपनियों को ऊंची कीमत पर भी कच्चा माल लेना पड़ रहा है, जिससे भविष्य में दवाओं की कमी का खतरा भी है। ऐसे में दवा कंपनियां कुछ हाई वैल्यू प्रोडक्ट की ओर मुड़ सकती है, जिनमें मुनाफा अधिक है। हो सकता है कुछ दवाएं रिटेल शेल्फ से गायब ही हो जाएं, क्योंकि मुनाफा कम होने या नुकसान के चलते कंपनियां उन्हें बनाना ही बंद कर सकती हैं।