“मुझे आयरन की गोली खाने के बाद कब्ज की शिकायत रहती है। और इस वजह से अक्सर स्कूल से छुट्टी भी लेनी पड़ती है।” ये कहना है मालती का जो कन्या इंटर कॉलेज, भंगेल, गौतम बुद्ध नगर के आठवीं कक्षा की छात्रा है। हालांकि ये शिकायत अकेली मालती की नहीं है बल्कि उसी के जैसी कई और लड़कियां जो अनीमिया से पीड़ित है उनकी भी है। छात्राओं से बात करने पर पता चला कि आयरन और फोलिक एसिड (आईएफए) की दवाई से सबको अलग-अलग तरह की शिकायतें हैं। मसलन, जी मचलाना, तबियत में भारीपन और महीने में भारी रक्तस्राव। इन छात्राओं के अभिभावकों को भी स्कूल में मिलने वाली इन मुफ्त दवाओं से बड़ी नाराजगी है। वे सरकार की इस कोशिश को बड़े शक की नजर से देखते हैं।
इस पूरे ब्लॉक में कुल छह कन्या स्कूल हैं। और यहां सरकार की अनीमिया को खत्म करने की थोड़ी-बहुत इन कोशिशों को इन छात्राओं और इनके अभिभावकों की नापसंद का शिकार होना पड़ रहा है। वैसे तो इस पूरे ब्लाक के स्कूलों में आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां कन्या विद्यालयों में मुफ्त दिए जाने की योजना है, लेकिन ऐसा कम ही होता है कि सरकार से इन दवाओं की सप्लाई बराबर हो और फिर वो स्कूलों तक बिना रुके पहुंच सके। ऐसे में इन छात्राओं को न तो इन दवाओं की आदत ही पड़ पाती है और न ही इनमें स्कूल इंचार्ज कोई जागरुकता जगा पाती हैं। हो ये रहा है कि एक-एक कर छात्राओं के बैच बारहवीं पास कर स्कूल छोड़ देते हैं और नई छात्राएं दोबारा खाली जगह भर देती है, लेकिन किसी को ये दवाएं नहीं मिलती और कभी अचानक से अगर मिलने भी लग जाएं तो ये उसे स्कूल में ले तो लेती हैं लेकिन खाती नहीं हैं।
१३ साल यानी जब लड़की कक्षा आठ में होती है तभी से वह मासिक चक्र में आना शुरू कर देती है इसलिए उसके शरीर में खून की कमी लगातार बनी रहती है। अब इसे या तो अच्छे खान-पान से संतुलित किया जा सकता है या फिर खाने के साथ आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां खाकर। दरअसल, इन स्कूलों में आने वाली लड़कियां गरीब परिवार की होती हैं जो घर से सिर्फ चाय पीकर स्कूल को दौड़ जाती हैं और ऐसे में ही उन्हें खुद को कुपोषण से बचाने के लिए सप्लिमेंटरी डाइट की जरूरत पड़ती है।
सुमेधा जो चेतराम कन्या इंटर कॉलेज, दादरी, गौतर बुद्ध नगर में दसवीं की छात्रा है उसकी शिकायत है कि आयरन की गोलियों से उसे मासिक धर्म के दिनों में बहुत दिक्कत होती है। स्कूल में आयरन और फोलिक एसिड की इंचार्ज टीचर इंदु (बदला नाम) से बात करने पर पता चला कि इन किशोर लड़कियों को ये हर बार बताया जाता है कि इस दिनों में आयरन की गोलियों का सेवन न करें, लेकिन इनकी भूल ही इनको परेशानी में डालती है। बहरहाल, इन किशोर लड़कियों के शरीर में आयरन की कमी से पढ़ाई में इनकी एकाग्रता पर भी असर पड़ता है जो खुद सुमेधा और उसकी कक्षा की और लड़कियों ने भी माना। हालांकि, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की डॉक्टरों का कहना है कि अनीमिया की कमी से पढ़ाई में ध्यान लगाने में परेशानी होना सबसे आम वजह है। शरीर में खून की कमी बढ़ती उम्र के बच्चों की एकग्रता पर असर डालती है क्योंकि यही उम्र में उनके दिमाग का भी विकास होता है। यही नहीं आयरन और फोलिक एसिड लगातार लेने से किशोरियों का जो मासिक धर्म का चक्र है वो स्थिर रहता है। क्योंकि उसके बिगड़ने से उनकी सेहत लगातार गिरती जाती है।
आयरन हमारे शरीर के लिए उतना ही जरूरी है जितना कैल्शियम क्योंकि कैल्शियम भी शरीर में तभी काम करता है जब उसे बराबर मात्रा में आयरन मिलता रहे। और इन दोनों में से किसी एक की कमी दूसरे को काम करने से रोकती है। स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए नतीजा होता है पढ़ाई में ध्यान न लग पाना, दिमाग का और शरीर (लंबाई और अन्य अंगों) का सही विकास नहीं हो पाता। डॉक्टर भी इस बात पर सहमति जताते हैं, लेकिन उनका भी मानना है कि लड़कियां सरकारी अस्पताल से गोलियां ले तो जाती हैं लेकिन उन्हें खाती नहीं हैं या कुछ वक्त बाद छोड़ देती हैं।
गौतम बुद्ध नगर जिले के सभी कन्या स्कूलों में जाने पर पता चला कि स्कूलों में प्रोग्राम की मॉनिटरिंग है तकरीबन हर स्कूल में कोई एक टीचर आयरन प्रोग्राम की इंचार्ज है और यही इन लड़कियों की काउंसलिंग भी करती हैं। लेकिन, जिले में पिछले कुछ अर्से से आयरन की गोलियों की सरकारी सप्लाई कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों में जच्चा के लिए तो है, लेकिन किशोरावस्था की स्कूल जाने वाली इन छात्राओं के लिए नहीं है। यही वजह है कि जिले के हर ब्लॉक के कन्या स्कूलों में आयरन की गोलियां देने वाली आंगनवाड़ी महिलाएं भी खाली हाथ बैठी हैं। स्कूल जाने वाली किशोर लड़कियों में बढ़ते अनीमिया की रोकथाम के लिए ठीक इसी तरह का आयरन प्रोग्राम गुजरात सरकार के स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग ने युनिसेफ के साथ मिलकर सन २००० में कुछ स्कूलों में शुरू किया था और जो काफी सफल रहा। इस प्रोग्राम के नतीजे अगर उत्तर प्रदेश सरकारभी जान और समझ पाएं तो राज्य के हर स्कूल में प्रोग्राम भी होगा, दवाएं भी होगीं और उनकी मानिटरिंग भी होगी।
पत्रकार राष्ट्रीय प्रतिष्ठान के शोधकर्ता हैं।