कोटा। राजस्थान के कोटा शहर के बड़े सरकारी अस्पतालों में मानवता को शर्मसार करने वाली कई घटनाएं हुई। हर घटना में कमेटियां बनती गई, लेकिन जिम्मेदारों पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। लापरवाही के हर मामले में अपनों को बचाने के लिए पर्दा पड़ता गया और मौतों के राज कागजों में दफन होते गए। संवेदनशील व लोककल्याणकारी सरकार के राज में अस्पतालों में ये घटनाएं अब आम हो चुकी है। इस कारण आज तक किसी भी मामले में प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में एक मरीज दर्द से तड़प-तड़प कर मर गया, लेकिन उसे संभालने वाला कोई स्टाफ नहीं मिला। मरीज के परिजनों ने इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए महावीर नगर थाने में मेडिकल कॉलेज प्रशासन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। इधर दर्द से तड़प रहे मरीज का सोशल मीडिया पर खतरनाक वीडियो वायरल हुआ तो प्रशासन हरकत में आया। जिला प्रशासन व मेडिकल कॉलेज ने जांच कमेटी बनाई दी।
पहले भी हो चुकी कई मौतें
एमबीएस व नए अस्पतालों में पहले भी लापरवाही के कारण कई मौतें हो चुकी है। एमबीएस अस्पताल में कैथूनीपोल निवासी एक मरीज की पत्नी के साथ लाइन में खड़े-खड़े मौत हो गई थी। इसके अलावा नए अस्पताल में भी बॉम्बे बस्ती निवासी एक महिला की ओपीडी की लाइन में पर्ची बनाते समय मौत हो गई थी। उन मामलों में भी जांच कमेटियां बनी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
ज्यातर मोखिक बनती है कमेटियां
ऐसे मामलों में ज्यातर जिम्मेदार अधिकारी तत्काल मोखिख रूप से कमेटी की घोषणा करके जांच करवाने की बात कहते हैं। कागजों में आते आते कमेटी के सदस्य ही बदल जाते हैं। फिर लम्बे समय तक कमेटी सदस्य के पास आदेश की कॉपी तक नही पहुंचती। समय निकलने के साथ बात आई गई हो जाती है। वहीं, जांच समय पर पूरी नही होने के पीछे जिम्मेदारों की दूरदर्शी सोच भी है कि प्रदर्शनकारी एक दो दिन हल्ला मचाएंगे और अखबार भी दो-तीन दिन ख़बर छापकर भूल जाएंगे।
इन मामलों से समझे
27 अप्रेल को रामपुरा फतेहगढ़ी निवासी 60 वर्षीय सतीश अग्रवाल बाथरूम जाते समय गिर गए। कोरोना के चलते कफ्यूग्रस्त क्षेत्र होने से उन्हें 108 एम्बुलेंस नहीं मिली। उनके बेटे मनीष अग्रवाल व अन्य परिजन जिंदगी बचाने के लिए दो किमी तक पिता को ठेले पर रखकर भागते रहे। जैसे-तैस एमबीएस अस्पताल पहुंचे तो चिकित्सक इमरजेंसी वार्ड से आउटडोर और आउटडोर से इमरजेंसी वार्ड में परिजनों को दौड़ाते रहे. चिकित्सक ने डेढ़ घंटे इंतजार के बाद ईसीजी लिखी, लेकिन उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई. परिजनों ने अस्पताल प्रशासन को शिकायत दी, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं हुई।
4 मई को रामपुरा क्षेत्र के फतेहगढ़ी निवासी क्षेत्रपाल 45 घर पर खाना खाने के बाद अचेत हो गए। एम्बुलेंस नहीं मिली तो उनका भाई ठेले पर लेकर उन्हें अस्पताल दौड़ा। रामपुरा जिला अस्पताल के लिए दौड़ा, लेकिन चिकित्सकों ने उन्हें एमबीएस अस्पताल भेज दिया। जिला अस्पताल में भी मरीज के लिए कोई एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं हो सकी। एक परिचित ने अपनी कार से उसे जैसे-तैस एमबीएस अस्पताल पहुंचाया। यहां आते ही उसे मृत घोषित कर दिया। हॉट स्पॉर्ट एरिया क्षेत्र का होने केकारण कोविड़ की जांच के लिए नए अस्पताल भेजा गया। रात 9.30 बजे शव को लेकर परिजन नए अस्पताल लेकर पहुंचे। रात डेढ़ बजे उनका सेम्पल लिया। सुबह दस बजे तक रिपोर्ट नहीं आई। उसके भाई ने राजनीतिक रसूख रखने वाले परिचितों को फोन किया। उसके बाद दोपहर दो बजे रिपोर्ट आई।
16 मई को रामपुरा निवासी 71 वर्षीय शारदा देवी की एम्बुलेंस के अभाव में स्ट्रेचर पर बेटों के सामने दम तोड़ दिया। उन्हें सांस में तकलीफ होने पर परिजन एमबीएस अस्पताल लेकर गए थे। वहां कोविड की जांच लिखी गई, लेकिन नए अस्पताल के लिए उन्हें एम्बुलेंस नहीं मिली और आखिरकार ओपीडी के बार ही स्टे्रचर पर उनकी मौत हो गई। मामले में हल्ला मचा तो मेडिकल कॉलेज प्राचार्य ने जाच के आदेश दिए। एमबीएस अस्पताल प्रशासन ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी। उस कमेटी को 24 घंटे में जांच रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन वह जांच रिपोर्ट आज नहीं आई। कॉलेज प्रशासन आज तक यह पता नहीं लगा पाया कि 2 दर्जन एम्बुलेंस अधिकृत होने के बावजूद मरीज को उस समय एम्बुलेन्स क्यो नहीं मिल पाई। क्या एम्बुलेन्स भी कागजों में दौड़ाई जा रही है?