नई दिल्ली। बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के उपचार में काम आने वाली दवा ‘एंफोटेरेसिन-बी’ का केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा आवंटन अतार्किक प्रतीत होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में इस बीमारी के मामलों की संख्या को देखते हुए राज्य को दवा की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है।
इसी मुद्दे पर विभिन्न जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की अन्य पीठ ने कहा कि केंद्र को दवा की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए। मुंबई स्थित मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की खंडपीठ को राज्य सरकार ने सूचित किया कि महाराष्ट्र में पिछले तीन दिन में ब्लैक फंगस से 82 लोगों की मौत हुई है।
पीठ ने इसपर महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी को यह पता लगाने को कहा कि क्या संबंधित लोगों की मौत दवा दिए जाने में विलंब की वजह से हुई है। इसने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह म्यूकरमाइकोसिस के मामलों और दवा के उपलब्ध भंडार का वास्तविक आंकड़ा रखे तथा यह सूचना केंद्र को उपलब्ध कराए जिससे कि दवाओं की खरीद समय पर की जा सके।
कुंभकोणी ने शुरू में अदालत को बताया कि राज्य में सात जून तक ब्लैक फंगस से मरने वालों की संख्या जहां 512 थी, वहीं 10 जून तक यह संख्या बढ़कर 600 हो गई। केंद्र सरकार के वकील अनिल सिंह ने कहा कि केंद्र ने महाराष्ट्र को 11 मई से नौ जून के बीच प्रतिदिन ‘एंफोटेरेसिन-बी’ की औसतन 4,060 शीशियों का आवंटन किया।
पीठ ने हालांकि उल्लेख किया कि देश में ब्लैक फंगस के कुल 23,254 मामलों में से 25 प्रतिशत मामले महाराष्ट्र में हैं और दावा का आवंटन अपर्याप्त है तथा यह राज्य में बीमारी के उपचाराधीन मामलों के अनुपात के हिसाब से नहीं है।
अदालत ने केंद्र के शपथपत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि दमन और दीव में ब्लैक फंगस का कोई उपचाराधीन मामला नहीं है, लेकिन उसे दवा की 500 शीशियां मिलीं। त्रिपुरा में एक उपचाराधीन मामला है, लेकिन उसे एक भी शीशी नहीं मिली। मणिपुर और नगालैंड में एक-एक मामला है और उन्हें दवा की पचास-पचास शीशियां मिलीं।
साथ ही यह भी कहा कि यह आवंटन तार्किक प्रतीत नहीं होता। क्या दवाएं असल में वहां पहुंच रही हैं जहां इनकी जरूरत है? वितरण का मानदंड क्या है? अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र को आवंटित मात्रा (एंफोटेरेसिन-बी की) काफी कम है। आवंटन गतिशील तथा पूरे भारत में आवश्यकता के आधार पर होना चाहिए। किसी भी मरीज को दवा की कमी का सामना न करना पड़े।
कोर्ट ने कहा कि यदि देश में उत्पादन पर्याप्त नहीं है तो सरकार को दवा के आयात के बारे में सोचना चाहिए। अदालत महाराष्ट्र में कोविड-19 प्रबंधन पर विभिन्न जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। कुंभकोणी ने पीठ को बताया कि महाराष्ट्र ने जेलों में कर्मचारियों और कैदियों को कोविड रोधी टीका लगाने की शुरुआत की थी जहां ज्यादातर कर्मचारियों का टीकाकरण हो चुका है, लेकिन अभी 27,000 कैदियों का पूर्ण टीकाकरण होना बाकी है।
उन्होंने कहा कि जेलों में प्राय: आरटी-पीसीआर जांच की जाती रही हैं और मुंबई के पास स्थित तलोजा जेल में कोविड-19 के केवल पांच उपचाराधीन मामले हैं। अदालत ने कहा कि मामलों में कमी की वजह से राज्य को आत्मसंतुष्ट नहीं होना चाहिए और ‘टोसिलिजुमैब’ तथा अन्य आवश्यक दवाओं का पर्याप्त भंडार रखना चाहिए।
इसने राज्य सरकार को सभी मुद्दों पर 15 जून तक नया शपथपत्र दाखिल करने को कहा और सुनवाई 16 जून तक के लिए स्थगित कर दी। मुंबई स्थित प्रधान पीठ के अतिरिक्त, औरंगाबाद पीठ के समक्ष भी म्यूकरमाइकोसिस रोधी दवा की कमी का मुद्दा उठा।
न्यायमूर्ति आर वी घुजे और न्यायमूर्ति बी यू देबद्वार की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दवा की कमी चिंताजनक है और जब तक केंद्र सरकार आपूर्ति में सुधार के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाती, तब तक मृत्यु के मामले कम नहीं होंगे।
पीठ ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार दवा की आपूर्ति बढ़ाने के बारे में 16 जून को बयान देगी। इसने राज्य के वकील-मुख्य लोक अभियोजक से कहा कि वह म्यूकरमाइकोसिस के उपचाराधीन मामलों, ठीक हुए मरीजों की संख्या और बीमारी से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या के बारे में 15 जून तक विवरण प्रस्तुत करें।