शाहजहांपुर, बरेली (उप्र)। कोरोना वायरस की आड़ में झोलाछाप और मेडिकल स्टोर संचालकों ने मिलकर जीवनरक्षक दवाइयां मनमाने दामों पर बेचना शुरू कर दिया है। ज्यादातर जीवनरक्षक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले साल्ट को चीन से आयात होना और इनकी आवक बंद बताकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को लूटा जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के दवा विक्रेता जरूरतमंदों को बुखार, दर्द निवारक और एंटीबायोटिक दवाएं 20 से 30 फीसदी महंगी बेच रहे हैं। कहा जा रहा है कि साल्ट न आने से फार्मा कंपनियां उनके दाम बढ़ा रही हैं। थोक दवा विक्रेता भी मानते हैं कि ब्रांडेड कंपनियों की तुलना में जेनेरिक दवाएं 50 से 60 फीसदी सस्ती पड़ती हैं और इनमेें इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर साल्ट चीन से आयात होते हैं। इसलिए जेनेरिक दवाओं के ज्यादातर खरीदार ग्रामीण क्षेत्र के गरीब तबके के लोग होते हैं। अधिकांश झोलाछाप जेनेरिक दवाएं थोक में खरीद लेते हैं और गांवों मेें इलाज के दौरान उन्हें महंगे दामों पर खपाते हैं। खास बात यह है कि इन दवाओं के रैपर पर प्रिंट एमआरपी उनकी वास्तविक कीमत से चार-पांच गुना ज्यादा होती है। देहात क्षेत्र में झोलाछाप एक चौथाई कीमत पर खरीद ले जाते हैं और ग्रामीणों को एमआरपी पर बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं। कोरोना वायरस की आड़ में जिन दवाइयों के दाम मनमाने वसूले जा रहे हैं, उनमें एलोपैथी में बुखार, सिरदर्द, पेचिश, कमजोरी आदि बीमारियों के उपचार में पैरासिटामोल, डाइक्लोफिनेक, सेफेक्सिम, टिनिडाजोल, एमोक्सिलीन, सिप्रोफ्लॉक्सिन, डेक्सामेथासोन, थर्माडॉल, जेंटामाइसीन, थर्माडॉल, डेकाड्यूराबोलिन लिक्विड वाले अन्य ब्रांड नेम के जेनेरिक इंजेक्शन के नाम शामिल हैं।