नई दिल्ली। कोरोना वायरस के इलाज के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक टीके और दवा की खोज में लगे हुए हैं। हालांकि, वर्तमान स्थिति में पहले से मौजूद दूसरी बीमारियों की सात दवाएं इस बीमारी के उपचार में फायदेमंद पाई गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इन दवाओं के भी विस्तृत परीक्षण शुरू कर दिए हैं। इनमें से दो दवाओं को इस्तेमाल करने की सलाह भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी डॉक्टरों को दी है।
मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन के साथ एक एंटीबॉयोटिक एजिथ्रोमाइसिन देने से कोविड का तेज इलाज हो रहा है। शोध में पाया गया है कि क्लोरोक्वीन से करीब 25 फीसदी मरीज छह दिन में कोविड-19 के मरीज ठीक हो रहे हैं। तुलना उन मरीजों से की गई, जिन्हें अन्य दवाएं दी गई। क्लोरोक्वीन के साथ एजिथ्रोमाइसिन देने से परिणाम और बेहतर हैं। वर्ना उपचार में करीब 22 दिन का समय लगता है।
आईसीएमआर ने जिन दो एंटी रेट्रो वायरल दवाओं को आजमाने की सिफारिश की है उनमें लोपिनावीर तथा रिटोनावीर दवाएं हैं। ये एचआईवी/एड्स के इलाज में इस्तेमाल होती हैं। चीन, भारत समेत कई देशों में कोविड रोगियों पर ये दवाएं आजमाई जा चुकी हैं तथा लाभकारी पाई गई हैं। जिन मरीजों को ये दवाएं दी जा रही हैं, वे अपेक्षाकृत जल्दी ठीक हो रहे हैं।
अब तक कोविड के उपचार में सबसे प्रभावी पाई गई है जापानी फ्लू की दवा फविप्रिरावीर। इसे कोविड के मरीज रिकॉर्ड चार दिन में ठीक हुए हैं। इसी प्रकार ईबोला की दवा रेमडेसीवीर भी कोविड में प्रभावी रही है। यह दवा सार्स और मर्स बीमारियों में भी कारगर रही थी। इसके अलावा कुछ देशों में बर्ड फ्लू की दवा टेमिफ्लू को लेकर भी अच्छे नतीजे आए हैं। इन सात दवाओं को ज्यादातर देशों में अस्पतालों में सीमित इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन इन्हें अभी आधिकारिक रूप से दवा घोषित नहीं किया जा सकता है। इसके लिए लंबे समय तक और हजारों मरीजों पर विश्वभर में परीक्षण करने होंगे। डब्ल्यूएचओ ने इसकी पहल शुरू की है। यह नई दवा और टीके की खोज के अलावा हो रहे प्रयास हैं।