नई दिल्ली: अकसर खबरें आती हैं कि दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के कारण हर साल सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है। ताजा जानकारी यह है कि एक साल के दौरान देश में करीब 370 लोगों की मौत की वजह फिर क्लिनिकल ट्रायल बना है। हालांकि इसके एवज में सरकार 40 लाख रुपये बतौर मुआवजा मृतकों के परिवारों को दे चुकी है। कुछ परिवारों को अब भी मुआवजे का इंतजार है।

ड्रग कंट्रोलर जनरल इंडिया डॉ. जीएन सिंह के मुताबिक, दवाओं के शोध को बढ़ावा देना और उससे होने वाली मौतों पर नियंत्रण लाना दोनों विषय सरकार के लिए जरूरी हैं। साल भर में 370 लोगों की इस ट्रायल की वजह से मौत हुई है। सूत्रों के मुताबिक, पिछले महीने कई राज्यों से क्लिनिकल ट्रायल के कारण होने वाली मौत का ब्यौरा मांगा गया था। दिल्ली स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक रिपोर्ट मंत्रालय तक पहुंची है। इसमें 60 लोगों की मौत का जिक्र है। इनमें 35 मरीज किसी न किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त होकर एम्स में उपचाराधीन थे। डॉ. सिंह की मानें तो क्लिनिकल ट्रायल से होने वाली मौत पर सरकार बेहद गंभीर है।
आंकड़ों पर गौर करें…
पिछले कुछ वर्षों में 3300 से ज्यादा मरीजों पर नई दवाओं के परीक्षण किए गए। वर्ष 2012 में एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत याचिका दायर की थी। जिसमें 15 वर्ष की आयु के 1,833 बच्चे पर दवा परीक्षण करने की बात कही गई। मानसिक रूप से बीमार 233 मरीजों पर परीक्षण किया गया। इनसे 2008 में 288 मौतें हुईं, 2009 में 637 लोग मरे और 2010 में यह आंकड़ा 597 पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर बताते हुए केंद्र को तत्काल ठोस नीति बनाने का आदेश दिया था।