रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है प्रभावित, कमेटी गठित, प्रिस्क्रिप्शन स्लिप की करेगी रेंडम जांच
अलवर (राजस्थान)। स्थानीय गीतानंद शिशु अस्पताल में भर्ती बच्चोंं की सेहत से खिलवाड़ का मामला सामने आया है। अस्पताल के एफबीएनसी वार्ड में दाखिल बच्चों को चिकित्सकों की लापरवाही के चलते बेवजह एंटीबायोटिक की घुट्टी पिलाई जा रही है। इनमें ज्यादातर बच्चे समय से पूर्व जन्मे, बेहद कमजोर या किसी बीमारी से ग्रस्त हैं।
ज्ञातव्य है कि बीते वर्ष गीतानंद शिशु अस्पताल में 3784 बच्चे दाखिल थे। इनमें खून में ऑक्सीजन की कमी, दम घुटने या बेहोशी के शिकार मात्र 667 बच्चों को एंटीबायोटिक दिया जाना था। लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही के चलते 1992 बच्चों को बिना किसी कारण एंटीबायोटिक दे दिया गया। आरसीएच कॉर्डिनेशन कमेटी की जिला स्तरीय बैठक में भी नवजात शिशुओं को बेवजह एंटीबायोटिक से इलाज पर गहन मंथन हुआ है।
नवजात शिशुओं को एंटीबायोटिक रोकने और डॉक्टरों की लिखी इलाज की पर्ची की जांच करने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई है। इसमें शिशु रोग विशेषज्ञ, डिप्टी कंट्रोलर एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ शामिल रहेंगे। यह कमेटी मातृ-नवजात शिशु की मौत की ऑडिट भी करेगी। डॉक्टरों का मानना है कि नवजात को एंटीबायोटिक देने का दुष्प्रभाव जीवनभर रहता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, जिससे वह बार-बार बीमार होता है। आरसीएचओ डॉ. ओमप्रकाश मीणा के अनुसार एफबीएनसी यूनिट के लिए आंतरिक प्रिस्क्रिप्शन ऑडिट कमेटी बनाई गई है। यह कमेटी प्रिस्क्रिप्शन स्लिप की रेंडम जांच कर शुरुआत में ही शिशुओं को एंटीबायोटिक दवा देने पर रोक लगाएगी। दरअसल, प्राथमिक स्तर पर एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से शरीर के बैक्टीरिया प्रभाव में आ जाते हंै। इससे बच्चों के पुन: बीमार होने पर सामान्य दवा काम करना ही बंद कर देती है।
बार-बार एंटीबायोटिक देना ठीक नहीं
वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ एवं निपी के वरिष्ठ राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सतपाल यादव का कहना है कि इंफेक्शन प्रभावित शिशुओं को इलाज के लिए एंटीबायोटिक दिया जाता है। इसे बेवजह देना गलत है। बच्चों को बार-बार एंटीबायोटिक देने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। हर बच्चे की बेहतर जांच कर बीमारी के अनुसार ही एंटीबायोटिक दवा लिखी जानी चाहिए।