लंपी वायरस के कारण भारत में एक बड़ी संख्या में पशुओंं को क्षति पहुंची है। इस बीमारी के कारण बीते साल भी कई पशुओं की मौत हो गई। लेकिन इस संक्रमण से मवेशियों को बचाने के लिए जिस वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है  पशुपालन विभाग की ओर से जिन दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है उनके ऊपर सवाल उठाए गए हैं।

एंटीबॉयोटिक के रुप में इस्तेमाल होने वाले एनरोफ्लोक्सोसिन इंजेक्शन के वायल में फंगस नजर आया है। टैबलेट्स के एक बैच में 10 गोलियों की पैक स्ट्रिप में एक भी टैबलेट नहीं है। कई अन्य दवाओं के कंपाउंड गलत हैं। इसलिए वेटरनरी डॉक्टरों ने इन दवाओं को लिखना बंद कर दिया है।

इन दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों को इसलिए चुप करा दिया गया है ताकि पशुपालन विभाग की छवि खराब ना हो।

एनरोफ्लोक्सोसिन इंजेक्शन के वायल में फंगस और कचरा 

एनरोफ्लोक्सोसिन इंजेक्शन के वायल में फंगस और कचरा देखने को मिला है। इसके अतिरिक्त ये भी सामने आया है कि पशुओं की कृमिनाशक दवा में स्पेलिंग गलत लिखी है। इस दवा में Rifoxaniumide i.p कंपाउंड लिखा हुआ है। इसका सही नाम Rafoxanide है। डॉक्टरों का मानना है कि ये दवा पशुओं पर कोई असर नहीं कर रही है।

एमोक्सिसिलिन और जेंटामाइसिन कंपाउंड की एंटोबायोटिक है। लेकिन ये गलत है क्योंकि एमोक्सीसिलिन पाउडर फार्म है और जेंटामाइसिन सिरप है। इन दोनों दवाओं को एक साथ नहीं दिया जा सकता है।

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इसके साथ ही डॉक्टरों का ये भी कहना है कि कृमिनाशक क्लोसेनटेल दी गई है। इसके वॉयल पर एक्टरनल यूज ओनली लिखा हुआ है। यह भी गलत है, क्योंकि क्लोसेनटेल का उपयोग ओरली  किया जाता है। आइवरमेक्टिन ट्यूब पर इंट्रामेमरी लिखा हुआ है। इसका मतलब कि अंदर दिया जाना है, जबकि यह थन के अंदर नहीं दिया जाता है। यदि इस दवा को गाय के थन में लगाएंगे तो सीधा असर दूध पर पड़ सकता है।

पशुपालन विभाग का कहना नहीं आयी शिकायत

जब इस संबंध में पशुपालन विभाग के संचालक डॉ. आरके मेहिया से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि गर किसी दवा या इंजेक्शन में कोई समस्या है तो संबंधित अधिकारी बताएं। जिसने भी सप्लाई की हाेगी, उस कंपनी से स्पष्टीकरण लेंगे। वैसे तो शिकायत नहीं आई पर किसी बैच में ऐसी समस्या है ताे उसकी भी जांच करवायेंगे।