हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने घटिया दवाओं के उत्पादन पर कड़ी कार्रवाही की है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से सवाल  पूछा है कि क्या दवा की कंपनियों ने निजी प्रयोगशाला से इन दवाओं का परीक्षण करवाया है या नहीं ? यदि परीक्षण के दौरान दवाएं घटिया पायी गई थी तो क्या कंपनियों के द्वारा प्रदेश सरकार को इस संबंध में सूचित किया गया था या नहीं ?

घटिया दवाओं को लेकर हाईकोर्ट ने मांगी स्टेटस रिपोर्ट 

हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा कि दवा परीक्षण प्रय़ोगशाला में नियमित कर्मचारियों की तैनाती क्यों नहीं की गई ? मामले की सुनवाई के दौरान पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस संस्था की ओर से अदालत को बताया गया कि साल 2014 में उद्योग विभाग की ओर से से 3.50 करोड़ रुपये प्रयोगशाला के निर्माण के लिए खर्च किए गए है, लेकिन अभी तक इसे चालू नहीं किया गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने बारहवीं पंच वर्षीय योजना के तहत 30 करोड़ रुपये की राशि जारी की थी।

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कोर्ट ने प्रदेश सरकार से लैब के निर्माण के बारे में भी ताजा स्टेटस रिपोर्ट (Latest Status Report) तलब की है। राष्ट्रीय औषधि नियामक और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने हिमाचल में निर्मित 11 दवाइयों के नमूनों को घटिया घोषित किया है, जबकि एक नमूने को नकली पाया गया। घटिया और नकली दवाइयों के निर्माता बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़, काला अंब के साथ-साथ पांवटा साहिब के औद्योगिक समूहों में स्थित हैं। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 16 नवंबर को निर्धारित की गई है।