नई दिल्ली। अगर आप चिकन, मटन व अंडा खाने का शौक रखते हैं तो सावधान हो जाएं। पोल्ट्री, मटन, अंडा और अन्य पशु उत्पादों में बढ़ती एंटीबायोटिक दवाओं की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए मुसीबत बन सकती है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ऐसे प्रदूषित पशु उत्पादों का उपयोग करने वालों में छोटे-मोटे रोग भी संक्रामक हो सकते हैं। विश्व के 10 प्रमुख ऐसे देशों में जहां पशुपालन केंद्रों में सर्वाधिक एंटी बायोटिक उपयोग किया जाता है, उसमें भारत चौथे स्थान पर है। पशुओं और मुर्गियों को रोग से संरक्षित करने और उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्हें एहतियात के तौर पर चारे के साथ ही एंटी बायोटिक दवाएं दी जा रही हैं। भारत में 2013 में ढाई हजार टन से अधिक एंटी बायोटिक दवाओं का उपयोग पशु चारा उत्पादन में हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक नियामक प्राधिकरण की निगरानी प्रणाली में सुधार नहीं हुआ तो वर्ष 2030 तक पशुचारे में इसका उपयोग 82 फीसद तक बढक़र साढ़े चार हजार टन से अधिक पहुंच जाने का अनुमान है। उत्पादकता बढ़ाने और रोग से बचाने के चक्कर में उनके चारे में एंटीबायोटिक दवाओं की खुराक मिला दी जाती है। पशुओं के पालन पोषण का तरीका मानव के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनने लगा है। मांसाहार के जरिए शरीर में इतनी एंटीबायोटिक जा रही है कि कई रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। यह ऐसे ही जारी रहा तो स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक नतीजे होंगे।
आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में चिकन, मटन, बीफ और पोर्क की खपत वर्ष 2004 के मुकाबले वर्ष 2011 में प्रति माह प्रति व्यक्ति 0.13 किलो से बढ़ कर 0.27 किलो पहुंच गई। जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 0.22 किलो से बढक़र 0.39 किलो हो गई। बता दें कि यह आंकड़ा पूरे देश की आबादी के अनुपात में है। जाहिर है कि मांसाहारियों के आधार पर आंकड़ा निकाला जाए तो यह कहीं अधिक होगा। इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (इवीआरआइ) के संयुक्त निदेशक डाक्टर त्रिवेणी दत्त ने बताया कि यह ऐसा क्षेत्र है, जहां लोगों की नजर ही नहीं है। इन मांसाहारी उत्पादों में बढ़ती एंटी बायोटिक दवाओं के प्रभाव से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि पशु चारे में दवाओं के मिश्रण पर रोक है। समय-समय पर गाइड लाइन भी जारी की जाती है। लेकिन कमजोर निगरानी प्रणाली से इसका असर नहीं पड़ता है। पशुपालन व डेयरी मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक ज्यादातर राज्यों में पोल्ट्री व अन्य पशु उत्पादों की जांच के लिए न तो उचित निगरानी प्रणाली है और न ही परीक्षण की सुविधा। मटन और पोल्ट्री का ज्यादातर कारोबार यहां असंगठित क्षेत्रों में है, जिसके नियमन पर कभी ध्यान नहीं दिया गया है। वर्ष 2011 में पहली बार मत्स्य और शहद के लिए एंटी बायोटिक की सीमा निर्धारित की गई थी। जबकि वर्ष 2017 में खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने पोल्ट्री, मटन, अंडे और दूध में एंटी बायोटिक दवाओं, पशु चिकित्सा की दवाओं और पशुचारे में मिलाई जाने वाली दवाओं की सीमा निर्धारित करने के बारे में अधिसूचना जारी की गई थी। पर उसका कितना पालन किया जा रहा है इसकी कोई जानकारी नहीं है