देहरादून। राज्य में दवा खरीद की नीति में जल्द सुधार लाया जाएगा। इसके लिए स्वास्थ्य महानिदेशालय को दवा खरीद नीति का परीक्षण करने को कहा गया है। गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग दवा खरीद में दोहरे मापदंड अपना रहा है। भारत सरकार की कंपनियों से दवा बिचौलियों के जरिए खरीदी जाती है जबकि राज्य की कंपनियों से सीधे खरीद की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की कंपनियों से मोटी खरीद होती है इसलिए वहां बिचौलिए शामिल किए जाते हैं। जबकि राज्य की कंपनियों से छोटी खरीद को देखते हुए सीधे खरीद की जा रही है। इस तरह विभाग दवा खरीद के बजट का बड़ा हिस्सा बिचौलियों पर लुटा रहा है।
इससे सरकार को तो चपत लग ही रही है, साथ ही उत्तराखंड को अन्य राज्यों की तुलना में दवाएं महंगी भी खरीदनी पड़ रही हैं। राज्य में दवा के लिए स्वास्थ्य महानिदेशालय दवा निर्माता कंपनी को आर्डर भेजता है। लेकिन कंपनी सीधे विभाग को दवा सप्लाई नहीं करती। आपूर्ति के लिए डिस्ट्रीब्यूटर रखे गए हैं। यही बिचौलिए कंपनी से आई दवा की सप्लाई सरकार को करते हैं। सरकार की ओर से भुगतान भी बिचौलिए को किया जाता है। जानकारी अनुसार राज्य का स्वास्थ्य विभाग एक साल में 25 से 30 करोड़ रुपये की दवाई खरीदता है।
कंपनियां दवा की सीधी खरीद पर 15 से 20 प्रतिशत तक का डिस्काउंट देती हैं लेकिन बिचौलियों को बीच में रखने से यह लाभ सरकार को नहीं मिल पा रहा है। इस संबंध में स्वास्थ्य सचिव नितेश झा का कहना है कि दवा खरीद में कई खामियां हैं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है। स्वास्थ्य महानिदेशालय को इसका परीक्षण करने को कहा गया है। जल्दी ही दवा खरीद की नीति में सुधार किया जाएगा।