नैनीताल। हाईकोर्ट से जेनरिक दवाएं लिखने तथा अनावश्यक टेस्ट नहीं लिखने के मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की पुनर्विचार याचिका कैंसिल कर दी है। कोर्ट के आदेश के बाद साफ है कि सरकारी चिकित्सकों को मरीज को जेनरिक दवाएं ही लिखनी होंगी।
गौरतलब है कि पिछले साल हाईकोर्ट ने अधिवक्ता अतुल बंसल की जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था कि सरकारी अस्पताल के चिकित्सक मरीजों को सिर्फ जेनरिक दवाएं ही लिखेंगे। यही नहीं, मरीजों को अनावश्यक जांच के लिए नहीं भेजेंगे। इस आदेश के खिलाफ हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा रिव्यू पीटिशन दायर की गई थी, जिसे कोर्ट पूर्व में खारिज कर चुकी है। हाल ही में आइएमए की ओर से पुनर्विचार याचिका दायर की गई। इसमें कहा गया था कि मरीज को कौन सी दवा लिखनी है, यह चिकित्सक के विवेक पर है। यही फार्मूला मेडिकल जांचों पर भी है। पीआइएल दायर करने वाले अधिवक्ता अतुल बंसल ने पुनर्विचार याचिका का विरोध किया। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। साथ ही सख्त आदेश पारित किया कि इस मामले में अब पुनर्विचार याचिका स्वीकार नहीं होगी। पिछले साल कोर्ट ने राज्य में बिना लाइसेंस तथा क्लीनिकल स्टेबलिसमेंट रजिस्ट्रेशन एवं रेगुलेशन एक्ट-2010 के तहत गैर पंजीकृत अस्पतालों को सील करने व अस्पतालों द्वारा ब्रांडेड दवा लिखने पर रोक लगाई थी। निजी व सरकारी अस्पतालों को डायग्नोस्टिक परीक्षणों के शुल्क निर्धारण के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने बाजपुर निवासी अहमद नबी की जनहित याचिका पर आदेश पारित किया था। इसमें कहा था कि बाजपुर दोराहा का बीडी अस्पताल व पब्लिक अस्पताल बिना पंजीकरण के चल रहे हैं। अदालत ने सरकार को निजी व सरकारी अस्पतालों में मेडिकल जांच व परीक्षणों का शुल्क निर्धारित करने का आदेश पारित किया था। सरकारी-गैर सरकारी चिकित्सालयों को मरीजों से ब्रांडेड के बजाज जेनरिक दवाइयां लिखने को कहा था।