पानीपत। जिले में सिविल अस्पताल और 28 स्वास्थ्य केंद्रों पर सस्ते इलाज की मरीजों को दरकार है। कुछ डॉक्टरों की कथित सेंटिंग ने रोगियों को मंहगे इलाज के लिए मजबूर कर दिया है। यह मामला महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा के संज्ञान में आ चुका है। इसकी शिकायतें मिलने के बाद मुख्यालय ने सभी जिलाें के सीएमओ को पत्र जारी किया है। जिसमें डॉक्टरों को मरीजों की ओपीडी स्लिप पर जेनरिक दवाइयां ही लिखने की सख्त हिदायत दी है।

गौरतलब है कि जहां मेडिकल स्टाेर संचालक उन्हें ब्रांडेड दवाइयां देते थे, तो मरीजों का उपचार महंगा होता था। लेकिन स्वास्थ्य मुख्यालय के निर्देशानुसार सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर अब कोई भी डॉक्टर मरीज को ब्रांडेड दवा नहीं लिख सकेगा। सबसे पहले डॉक्टर को वह दवा लिखनी होगी, जो सरकारी डिस्पेंसरी में उपलब्ध हो। यहां दवा उपलब्ध ना होने की एवज में पर्ची पर ब्रांडेड नहीं बल्कि जेनरिक दवा ही लिखने की हिदायत है। जबकि हालही में जिला अस्पताल से रोजाना कई पर्चियां सीधा निजी मेडिकल स्टोर में पहुंचती हैं और वहां से महंगी व ब्रांडेड दवाएं लेने को मरीज बेबस हैं।

तो वहीं दूसरी तरफ फार्मासिस्ट की मानें तो अस्पतालों में लगभग 216 तरह की आवश्यक दवाएं उपलब्ध रहती हैं, बल्कि कुछ दवाइयां लोकल अनुबंधित एजेंसियों से खरीदी जाती हैं। इसके बावजूद कई तरह की दवाएं उपलब्ध नहीं होती, तो मरीजों को बाहर निजी मेडिकलों से खरीदनी पड़ती हैं। जबकि सरकार की दवाओं की लिस्ट के अनुसार सभी सरकारी अस्पतालों में 640 तरह की दवाएं उपलब्ध हाेना जरूरी है। लेकिन इतने सालाें में पानीपत जिले के सरकारी अस्पताल में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मरीजों काे सब दवाएं अंदर से मिले।

गौरतलब है कि ऐसे आसान शब्दों में समझिए कमिशन का गेम। सिविल अस्पताल में औसतन 1 हजार की ओपीडी राेजाना हाे रही है। मानाें डाॅक्टराें ने मरीज की पर्ची पर 4 से 5 दवा लिख दी हैं। इनमें से 2 से 3 दवा सिविल अस्पताल में मिल जाती है। बाकी की दवाएं या ताे प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से या फिर बाहर के मेडिकल स्टाेराें से लेनी पड़ती है। अमूमन हर मरीज काे 40 से 100 रुपए की दवा बाहर से लेनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा स्किन राेगियाें काे बाहर से दवा लेनी पड़ती है। एमएस डाॅ. आलाेक जैन ने बताया कि सरकार से आदेश मिल चुके है।

जाेकि सब डाॅक्टराें काे निर्देश दिए गए है कि सब जेनरिक दवा ही लिखे। दरअसल जो दवाएं स्टॉक में उपलब्ध नहीं, तो ओपीडी स्लिप में एनए मार्क करने उपरांत फार्मासिस्ट को हस्ताक्षर करने होंगे। हालांकि इससे पहले भी ऐसा पत्र मुख्यालय ने जारी किया था, लेकिन इसके बावजूद डॉक्टरों की मनमानी जारी है। जिला के मरीजों को अब सरकारी अस्पतालों में सस्ता इलाज मुहैया होने की उम्मीद जगी है। सिविल अस्पताल में प्रतिदिन 1000 से 1200 के बीच मरीजाें की ओपीडी हाेती है।