चिरमिरी (छग)। सरकारी अस्पतालों में मरीज के पर्चे पर जेनरिक दवाइयां ही लिखने के आदेश के बावजूद डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिख रहे हैं। बाजार से महंगी दवाइयां खरीदने के कारण मरीजों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने अक्टूबर 2016 में ही जेनरिक दवाएं लिखने का निर्देश जारी कर दिया था, लेकिन सीएचसी बड़ा बाजार में डॉक्टर एमआर के चक्कर में जेनरिक दवाएं न लिखकर जानबूझकर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। मजबूरन जरूरतमंद मरीजों को निजी दवा स्टोर से महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही है। जेनरिक दवा लिखने के सीएमएचओ के निर्देश का असर डॉक्टरों पर नहीं पड़ रहा। अस्पताल में जन औषधि केंद्र से दवाओं की सप्लाई आती है। फिर भी डॉक्टर जो दवा लिख रहे हैं, वे अस्पताल की डिस्पेंसरी में उपलब्ध नहीं होती। ऐसे में मरीज को बाहर से दवाइयां खरीदकर अपनी जेब हल्की करनी पड़ रही है।
कोरिया में सीएमएचओ एसएस पैकरा का कहना है कि सभी डॉक्टरों को सख्ती से कहा गया है कि कोई भी ब्रांडेड दवा न लिखें, लेकिन सीएचसी चिरमिरी में जन औषधि केंद्र नहीं होने से ऐसा हो रहा है। मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां लिखने के पीछे जो कारण सामने आया है, वह यह कि अस्पतालों में दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) डॉक्टरों के संपर्क में रहते हैं और उन्हें कमिशन का लालच देकर महंगी दवा लिखने को प्रोत्साहित करते हैं। डॉक्टरों की इस मिलीभगत का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। हालांकि, ब्रांडेड दवाओं की तुलना में जेनरिक दवाइयां कई गुना सस्ती होती हंै। लेकिन ब्रांडेड दवाओं की खरीदारी गरीब और जरूरतमंद मरीजों की मजबूरी बन गई है। बड़ी दवा कंपनियां डॉक्टरों को खास कंपनी की दवा लिखने के लिए मोटी रकम और गिफ्ट देती है। इसमें सैर-सपाटे के पैकेज और अन्य सुविधाएं शामिल रहती हैं। यही कारण है कि डॉक्टर जेनरिक दवाओं की जगह आज भी ब्रांडेड और महंगी दवाएं ही लिखते हैं।