मुंबई। दवाइयां अंतरिक्ष में कई रोगों पर असर नहीं करती हैं। इसके लिए भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान मद्रास और नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिक अंतरिक्ष स्टेशन पर करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले रोगाणुओं का अध्ययन कर रहे हैं। ये रोगाणु दवाओं के प्रतिरोधक हो चुके हैं, यानी इन पर दवाएं काम नहीं करतीं।
अंतरिक्ष यात्रियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर
गौरतलब है कि अंतरिक्ष यात्रियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और अंतरिक्ष में इलाज की सुविधाएं भी सीमित होती हैं। इसलिए उनके स्वास्थ्य के लिए ये रोगाणु खतरनाक हो सकते हैं। वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अंतरिक्ष के वातावरण में ये रोगाणु कैसे अपना रूप बदलते हैं और दवाओं के प्रतिरोधक बन जाते हैं।
इस अध्ययन से पृथ्वी पर भी लाभ मिल सकता है। खासकर अस्पतालों के आईसीयू और ऑपरेशन थिएटर में जहां ऐसे रोगाणु जिन पर दवाओं का असर नहीं होता, वे मरीजों के इलाज में बड़ी चुनौती बन जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने खासतौर पर अंतरिक्ष स्टेशन पर पाए जाने वाले एंटर्रोबैक्टर बगैनडेंसिस नाम के रोगाणु पर अध्ययन किया है। यह अध्ययन अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य की रक्षा करने और अंतरिक्ष वातावरण में रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं के खतरे को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
वधवानी स्कूल ऑफ डेटा साइंस एंड एआई के डेटा साइंस और कार्तिक रामन ने कहा कि सूक्ष्मजीव सबसे कठिन परिस्थितियों में भी पनप जाते हैं। यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करते हैं कि इतने अनोखे वातावरण में सूक्ष्मजीव कैसे बढ़ते और जीवित रहते हैं।
नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी की सीनियर रिसर्च वैज्ञानिक कस्तूरी वेंकटेश्वरन ने कहा कि हमारी रिसर्च सूक्ष्मजीवों के समुदायों के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं को उजागर करती है। यह बताती है कि कैसे कुछ सामान्य सूक्ष्मजीव अंतरिक्ष स्टेशन जैसे प्रतिकूल वातावरण में मानव रोगाणु, एंटरोबैक्टर बगैनडेंसिस को एडेप्ट होने और जीवित रहने में मदद करते हैं।
अनुसंधान दल ने अंतरिक्ष स्टेशन के विभिन्न स्थानों से लिए गए एंटरोबैक्टर बगैनडेंसिस के सैंपल का गहन अध्ययन किया और पाया कि इनके जीनोम (आनुवंशिक संरचना) में बदलाव हो चुके हैं‡ साथ ही ये दवाओं के प्रतिरोध के नए तरीके विकसित कर चुके हैं। इस शोध के नतीजे काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
एंटरोबैक्टर बगैनडेंसिस के जीनोम में हुए बदलावों को समझने से वैज्ञानिक इस खतरनाक रोगाणु के लिए खास दवाएं बनाने में कामयाब होंगे। वहीं, अंतरिक्ष स्टेशन में ये रोगाणु कैसे रहते और बदलते हैं, इसे समझने से वैज्ञानिक बंद वातावरणों, जैसे अंतरिक्ष यानों और अस्पतालों में सूक्ष्मजीवों के संक्रमण को रोकने के लिए बेहतर रणनीतियां बना सकेंगे।